छत्तीसगढ़रायपुर

छोटी संस्था के चुनाव में ही उलझ गए कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे, जिले में निर्वाचन की जिम्मेदारी संभाल पाएंगे ?

रायपुर, किसी भी जिले में सबसे बड़ा अधिकारी होता है कलेक्टर, जिन्हें ज़िलाधीश भी कहा जाता है । जिले में किसी को कोई भी समस्या हो, वो अपने जिला कलेक्टर की ओर ही उम्मीद भरी नजरों से देखता है । लेकिन उस परिस्थिति  में आप क्या कहेंगे जब कलेक्टर साहब ही किसी समस्या को सुलझाने के लिए दूसरे की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हों ।

चलिये अब आपको संक्षिप्त रूप में समझाने की कोशिश करते हैं । हम बात कर रहे हैं रायपुर प्रेस क्लब की, जहां के संविधान के मुताबिक हर साल चुनाव होने हैं, लेकिन कुछ लोगों की हठधर्मिता के चलते चार साल से ज्यादा का वक्त हो गया और चुनाव नहीं हुए ।

थक हारकर प्रेसक्लब के पत्रकारों ने कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे से चुनाव कराने की मांग की। कलेक्टर साहब ने आधे-अधूरे मन से अपर कलेक्टर बीसी साहू को निर्वाचन अधिकारी भी बना दिया । इसके बाद पत्रकारों को तसल्ली देने के लिए प्रक्रिया शुरू करने का झांसा भी प्रशासन की ओर से दिया गया । आखिर में प्रक्रिया मौखिक रूप से यह कहकर रोक दी गई कि माननीय न्यायालय का स्थगन का आदेश है ।

अब निर्वाचन अधिकारी द्वारा प्रेस क्लब के सदस्यों को अपने खर्चे पर उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी जा रही है । जबकि ये  जनकल्याणकारी संस्था है, न कि किसी की व्यक्तिगत संपत्ती जिसपर वो अपने स्वयं के खर्चे पर कोर्ट जाए । वो भी तब जबकि इस केस में स्वयं जिला कलेक्टर और रजिस्टर्ड फर्म एंड सोसाइटी को भी पार्टी बनाया गया । लेकिन जिला प्रशासन और रजिस्टर्ड फर्म एंड सोसाइटी एक दूसरे के पाले में गेंद डाल रही हैं । और उम्मीद कर रहे हैं कि कोई तीसरा आए, और अपने खर्च पर इन्हें साफ-सुथरी थाली परोसकर दे दे ।

खैर जिला निर्वाचन अधिकारी,  रजिस्टर्ड फर्म एंड सोसाइटी के 31/01/2023 एक पत्र को आधार बनाकर चुनावी प्रक्रिया रोकने की बात फौरन कह रहे हैं, लेकिन इसके बाद का पत्र जो 08/02/2023 को रजिस्टर्ड फर्म एंड सोसाइटी के द्वारा जिला प्रशासन को भेजा गया है, उस पर खामोशी साध लेते हैं । इस पत्र के बारे में वे जिक्र तक नहीं करते, जिसमें पंजीयक ने उनसे रायपुर प्रेस क्लब की मतदाता सूची मांगने के लिए संबंधितो को निर्देश देने की बात कही है ।

कुल मिलाकर सभी कानूनी पैंच को निपटाते हुए, सार्वजनिक संस्था में निर्वाचन कराना जिला प्रशासन का दायित्व है ।  और अगर वे 600-700 सदस्यों की संस्था का निर्वाचन नहीं करवा पा रहे, तो सवाल जरूर खड़े होते हैं, कि वे आगे कैसे पूरे जिले के निर्वाचन की प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से निपटा पाएंगे ।

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