संविधान दिवस: रायपुर टाउन हॉल में डॉ. अंबेडकर को नमन, प्रस्तावना का सामूहिक वाचन

रायपुर। संविधान दिवस के अवसर पर रायपुर का ऐतिहासिक टाउन हॉल मंगलवार को पूरी तरह संवैधानिक भावना और राष्ट्रभक्ति के रंगों में रंगा हुआ दिखाई दिया। सुबह से ही नागरिकों, विद्यार्थियों, सामाजिक संगठनों और जनप्रतिनिधियों का आगमन शुरू हो गया था। इस विशेष समारोह में शामिल होकर उपस्थित लोगों ने भारत के महान संविधान शिल्पी, भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति गहरी श्रद्धा अर्पित की। समारोह का वातावरण ऐसा था मानो हर व्यक्ति संविधान की आत्मा को महसूस कर रहा हो और लोकतंत्र के प्रति अपनी निष्ठा को नए सिरे से मजबूत कर रहा हो।
कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. अंबेडकर के योगदान को नमन करते हुए हुई, जहाँ उनके विचारों, संघर्ष और दूरदृष्टि को विस्तार से याद किया गया। यह बताया गया कि कैसे बाबा साहेब ने न केवल संविधान का निर्माण किया, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और अधिकार-चेतना को भारत की लोकतांत्रिक रचना में स्थायी रूप से स्थापित किया। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित विशेष वीडियो और चित्र प्रदर्शित किए गए, जिनके माध्यम से उपस्थित जनसमूह ने उनके जीवन की संघर्षपूर्ण यात्रा को और निकटता से महसूस किया।
इसके बाद संविधान पर आधारित विशेष प्रदर्शनी का अवलोकन किया गया। प्रदर्शनी में संविधान निर्माण की ऐतिहासिक प्रक्रिया, प्रारूप समिति के सदस्य, मूल लेखन की पांडुलिपि, और लोकतंत्र के विकास में संविधान की भूमिका जैसे अनेक महत्वपूर्ण पहलुओं को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया था। कई लोग प्रदर्शनी के प्रत्येक हिस्से को ध्यानपूर्वक पढ़ते और समझते दिखे। विद्यार्थियों और युवाओं में विशेष उत्साह देखने को मिला, जो इस प्रदर्शनी को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की ज्ञान यात्रा के रूप में महसूस कर रहे थे।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा—संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक वाचन। हॉल में उपस्थित सभी लोगों ने एक साथ खड़े होकर प्रस्तावना के शब्दों का उच्चारण किया तो वातावरण में एक अद्भुत ऊर्जा और एकता का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे हर आवाज, भारत की विविधता को जोड़ते हुए एक ही संदेश दे रही हो—हम भारत के लोग, एक मजबूत, समान और न्यायपूर्ण राष्ट्र के लिए संकल्पित हैं।
इस अवसर पर वक्ताओं ने अपने संबोधन में कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक के सम्मान, स्वतंत्रता और अधिकारों की सुरक्षा की सबसे मज़बूत आधारशिला है। यह सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि देश की आत्मा है, जो हमें लोकतांत्रिक मूल्य, कर्तव्य और समान अवसर का मार्ग दिखाती है। उन्होंने यह भी कहा कि संविधान दिवस केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि आत्ममंथन और संकल्प का अवसर है—यह सोचने का कि हम अपने लोकतंत्र को और अधिक सशक्त बनाने में क्या योगदान दे सकते हैं।
समारोह के अंत में सभी महान स्वतंत्रता सेनानियों, संविधान निर्माताओं और उन दूरदृष्टा व्यक्तित्वों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गई, जिनकी मेहनत और त्याग ने भारत को एक समृद्ध, संवैधानिक और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। कार्यक्रम ने न सिर्फ यादों को ताज़ा किया, बल्कि नागरिकों में संविधान के प्रति गर्व और दायित्वबोध को और अधिक मजबूत किया।



