विदेश का सपना, झाड़ू की सच्चाई: रूस की सड़कों पर सफाई करते 17 भारतीय, कमाई 1.10 लाख रुपये

भारत में विदेश जाने को आज भी कामयाबी की सबसे बड़ी कसौटी माना जाता है। अच्छी नौकरी, बड़ी कंपनी और बेहतर जिंदगी—यही सपना लाखों युवाओं की आंखों में बसता है। लेकिन रूस से सामने आई एक रिपोर्ट इस सोच को नई दिशा देती है।
रूस के सेंट पीटर्सबर्ग शहर में 17 भारतीय युवक इन दिनों सड़कों की सफाई का काम कर रहे हैं। झाड़ू, फावड़ा और कचरा उठाना ही इनकी दिनचर्या है, लेकिन इस मेहनत के बदले उन्हें हर महीने करीब 1 लाख 10 हजार रुपये की सैलरी मिल रही है।
रूसी मीडिया आउटलेट फॉनटांका (Fontanka) की रिपोर्ट के मुताबिक, ये सभी युवक करीब चार महीने पहले रूस पहुंचे थे। इनकी उम्र 19 से 43 साल के बीच है और ये सभी रोड मेंटेनेंस कंपनी Kolomyazhskoye के लिए काम कर रहे हैं।
इन कामगारों की पृष्ठभूमि एक जैसी नहीं है। कोई किसान रहा है, कोई ड्राइवर, कोई छोटा व्यापारी तो कोई वेडिंग प्लानर। सबसे ज्यादा चर्चा 26 वर्षीय मुकेश मंडल की है, जिन्होंने दावा किया कि वे भारत में सॉफ्टवेयर डेवलपर रह चुके हैं और माइक्रोसॉफ्ट से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर AI, चैटबॉट और GPT जैसे टूल्स के साथ काम कर चुके हैं।
हालांकि रिपोर्ट यह भी स्पष्ट करती है कि यह तय नहीं है कि मुकेश ने माइक्रोसॉफ्ट में सीधे काम किया या उन कंपनियों में, जो माइक्रोसॉफ्ट के टूल्स का इस्तेमाल करती हैं।
कंपनी इन सभी भारतीयों को रहने, खाने, यूनिफॉर्म, सुरक्षा उपकरण और आने-जाने की सुविधा देती है। हर महीने करीब 100,000 रूबल की सैलरी से ये लोग भारत पैसे भेजने की योजना बना रहे हैं।
मुकेश का कहना है कि वे रूस में हमेशा के लिए नहीं आए हैं। एक साल काम करके पैसे जमा करेंगे और फिर भारत लौट जाएंगे। सड़क की सफाई को लेकर उनका नजरिया साफ है—
“काम छोटा या बड़ा नहीं होता, काम ही पूजा है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, रूस में मजदूरों की भारी कमी है। घटती आबादी और यूक्रेन युद्ध के कारण सफाई और सड़क जैसे कामों के लिए स्थानीय मजदूर नहीं मिल रहे, इसी वजह से भारत जैसे देशों से कामगार बुलाए जा रहे हैं।




