बिलासपुर
हाईकोर्ट में बुधवार को महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार स्वीकार करती है कि राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान में गलती हुई है। भविष्य में ऐसी गलती न हो इसका ध्यान रखा जाएगा। इस जवाब पर चीफ जस्टिस की डीबी ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह गलती नहीं अपराध है। क्या सरकार अपराधियों को छूट देगी। अपराधी के लिए सिर्फ एक जगह होती है। कोर्ट ने शासन को मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है यह बताने के लिए कहा है। इसके लिए 30 अप्रैल तक का समय दिया है।
याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ठाकुर की 2008 में स्वालंबन केंद्र मठपुरैना में सहायक ग्रेड तीन के पद पर संविदा पर नियुक्ति हुई है। सात वर्ष की सेवा के उपरांत उसने नियमित करने आवेदन दिया। आवेदन पर उसे जानकारी दी गई कि समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान रायपुर में वह नियमित कर्मचारी है। यहां से वेतन भी मिल रहा है।
इसकी जानकारी मिलने पर याचिकाकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी ली। इसमें पता चला कि राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान सिर्फ नाम के लिए चल रहा है। कागज में कर्मचारियों व अधिकारियों की नियमित नियुक्त कर प्रतिमाह लाखों रुपये वेतन निकाला जा रहा है।
इसके अलावा संस्थान का ऑडिट भी नहीं कराया गया है। इस घोटाले के खिलाफ कुंदन सिंह ठाकुर ने अधिवक्ता देवर्षी ठाकुर के माध्यम से हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की। कोर्ट ने पिछली सुनवाई में मुख्य सचिव को शिकायत की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया था।
पूर्व सचिव ने रिपोर्ट पेश कर यह स्वीकार किया कि राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान में गड़बड़ी हुई है। मामले को सुनवाई के लिए बुधवार को चीफ जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी व जस्टिस पीपी साहू की डीबी में रखा गया।
इस दौरान महाधिवक्ता ने कहा कि सरकार स्वीकार करती है कि राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान में गलती हुई है। भविष्य में ऐसे गलती न हो इसका सरकार ध्यान रखेगी
इस जवाब पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि यह गलती नहीं अपराध है, क्या सरकार अपराधियों को छूट देगी। अपराधियों के लिए एक ही जगह होती है। कोर्ट ने मामले की जांच कर दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही है इस पर चार सप्ताह के अंदर जवाब पेश करने का आदेश दिया है।
कई आईएएस अधिकारी हैं शामिल
वर्ष 2011 से रायपुर में चल रहे राज्य स्रोत निःशक्तजन संस्थान घोटाले में प्रदेश के कई कद्दावर आइएएस अधिकारियों के शामिल होने की बात कही जा रही है। सुनियोजित तरीके से कागज पर डॉक्टर समेत छह कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। सभी के वेतन बैंक के माध्यम से निकाले जा रहे थे। इसके अलावा चार हजार से अधिक निःशक्तजन का उपचार व कृत्रिम अंग लगाए गए हैं। प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में पूर्व सीएस ने संस्थान में चार लाख से अधिक की गड़बड़ी होने की बात स्वीकार की थी।