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नक्सलियों तक कैसे पहुंच रहे सुरक्षा बल के जवान?

रायपुर। बस्तर, जो दशकों से नक्सलवाद की आग में झुलसता रहा, अब एक नए बदलाव की ओर बढ़ रहा है। बीते दो सालों में बस्तर में नक्सलियों को सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। सुरक्षा बलों की लगातार चल रही कार्रवाइयों ने नक्सलियों के गढ़ को हिला कर रख दिया है। हालात ये हैं कि 1 जनवरी 2025 से 31 मार्च 2025 तक बस्तर में अलग-अलग जिलों में हुई मुठभेड़ में जवानों ने 119 से ज्यादा नक्सलियों का एनकाउंटर किया है । लेकिन आप सोच रहे होंगे कि आखिर ऐसा कैसे संभव हो रहा है, कैसे दशकों से पैठ जमाए बैठे नक्सली अपने ही घर में घिरते चले जा रहे हैं तो चलिए, इसे हम विस्तार से समझते हैं।”

नक्सलियों तक कैसे पहुंच रहे सुरक्षा बल के जवान?.

बस्तर में नक्सलियों के ठिकाने दशकों तक सुरक्षा बलों के लिए एक रहस्य बने रहे। लेकिन अब स्थिति बदल रही है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने वो सारी जानकारियां साझा कर दी हैं, जिनसे जवान सीधे माओवादी अड्डों तक पहुंच रहे हैं। बस्तर पुलिस के पास अब ऐसे स्थानीय लोग हैं, जो खुद कभी नक्सलियों के साथ थे, उनकी रणनीतियों को समझते हैं और अब पुलिस के लिए काम कर रहे हैं। इसके अलावा, हाईटेक ड्रोन और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर जवानों को नक्सल ठिकानों की सटीक लोकेशन मिल रही है।

टारगेट पूरा करने के लिए लगातार चल रहे ऑपरेशन.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2026 तक बस्तर को नक्सल मुक्त करने का लक्ष्य तय किया है। इसी को ध्यान में रखते हुए जवानों ने अब नक्सलियों के गढ़ में ही ऑपरेशन तेज कर दिए हैं। पहले जहां नक्सली TCOC (टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैंपेन) के जरिए सुरक्षाबलों पर हमले की रणनीति बनाते थे, अब जवान उन्हीं पर अटैक कर रहे हैं।
बस्तर पुलिस में बड़ी संख्या में लोकल युवाओं की भर्ती और सरेंडर नक्सलियों की मदद से सुरक्षा बलों को उन इलाकों में घुसने का मौका मिल रहा है, जहां पहले सोचना भी मुश्किल था। अब नक्सली बौखलाए हुए हैं और टुकड़ियों में बंट गए हैं।

बड़ी कार्रवाई में 1500 जवान शामिल.

नक्सल मोर्चे पर अब जवानों ने पूरी तैयारी कर रखी है। DRG, बस्तर फाइटर, CRPF, STF और कोबरा के करीब 1500 जवान संयुक्त रूप से ऑपरेशन लॉन्च कर रहे हैं। आमने-सामने की मुठभेड़ में नक्सलियों को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है।

नक्सल ऑपरेशन में सरेंडर नक्सलियों की भूमिका.

बस्तर के आईजी सुंदरराज पी कहते हैं कि पुलिस के बढ़ते दबाव के चलते स्थानीय नक्सली अब माओवादी संगठनों से किनारा कर रहे हैं। सरकार की पुनर्वास नीति के तहत इन्हें लाभ भी दिया जा रहा है। कई पूर्व नक्सली अब पुलिस में भर्ती होकर अपने पुराने साथियों के खिलाफ अभियान में जुटे हैं।
सरेंडर नक्सलियों का कहना है कि बाहरी नक्सली स्थानीय लड़ाकों का शोषण करते थे। वे निचले स्तर के नक्सलियों को सिर्फ ढाल की तरह इस्तेमाल करते थे और उन्हें प्रताड़ित करते थे। अब जब स्थानीय लोग माओवादियों का असली चेहरा देख चुके हैं, तो वे धीरे-धीरे मुख्यधारा में लौट रहे हैं।

नक्सलियों के अस्थाई कैंपों पर धावा.

सरेंडर नक्सलियों से मिली जानकारी के आधार पर सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के अस्थाई कैंपों पर लगातार हमले किए हैं। DRG और STF की टीमों ने जंगलों में घुसकर नक्सल ठिकानों को ध्वस्त किया है, यहां तक कि नक्सलियों के हथियार बनाने वाली फैक्ट्रियों को भी खत्म कर दिया गया है। अब बस्तर के बड़े हिस्से में जवानों की मौजूदगी दर्ज हो चुकी है, और नए पुलिस कैंप भी बनाए जा रहे हैं।

सुरक्षा बलों की नई रणनीति – जीरो कैजुअल्टी मिशन.

बस्तर पुलिस अब ‘जीरो कैजुअल्टी’ मिशन के तहत ऑपरेशन को अंजाम देने की योजना बना रही है। आने वाले महीनों में ऑपरेशन को इस तरह डिजाइन किया जाएगा कि जवानों को कम से कम नुकसान हो।
इसके अलावा, ग्रामीण इलाकों में विकास कार्यों को भी तेज कर दिया गया है। सड़कें बन रही हैं, स्कूल और अस्पताल खोले जा रहे हैं। इस विकास कार्य से स्थानीय ग्रामीण भी सरकार और पुलिस के समर्थन में आ रहे हैं, जिससे नक्सलियों की पकड़ कमजोर हो रही है।

कहां-कहां हुए बड़े ऑपरेशन?.

सुरक्षा बलों ने हाल ही में नारायणपुर के थूलथूली, सुकमा के भंडारपदर, बीजापुर के अंड्री और कांकेर के छोटेबेठिया जैसे इलाकों में बड़े ऑपरेशन किए हैं । इन इलाकों में सरेंडर नक्सलियों की सूचना पर जवानों ने नक्सलियों को मार गिराया और उनके ठिकानों को नष्ट कर दिया।

तो अब बस्तर में नक्सलवाद की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। चार दशक बाद पहली बार ऐसा लग रहा है कि नक्सलवाद अपने आखिरी दौर में है । सुरक्षाबल अपने मिशन पर डटे हुए हैं और सरकार का दावा है कि 2026 तक बस्तर पूरी तरह नक्सल मुक्त होगा । अब लग रहा है कि हमारी अगली पीढ़ी को बस्तर में तो नक्सली रहते हैं, ऐसे ताने नहीं सुनने पड़ेंगे ।

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