छत्तीसगढ़रायपुर

रायपुर : बदलते मौसम में अस्थमा के रोगी सावधानी बरतें,

रायपुर : होम्योपैथी चिकित्सा की सबसे समग्र प्रणालियों  में से एक है। होम्योपैथी में इलाज के लिए दवाओं का चयन व्यक्तिगत लक्षणों पर आधारित होता है। यही एक तरीका है जिसके माधयम से रोगी के सब विकारों को दूर कर सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। होम्योपैथी का उद्देश्य एलर्जिक अस्थमा होने वाले कारणों का सर्वमूल नाश करना है न की केवल एलर्जी का जहां तक चिकित्सा सम्बन्धी उपाय की बात है तो होमियोपैथी में एलर्जिक अस्थमा के लिए अनेकदवाइयां उपलब्ध हैं। व्यतिगत इलाज़ के लिए एक योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

 *अस्थमा*

सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाने के कारण जब किसी व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है तब यह स्थिति दमा रोग कहलाती है, इस रोग में व्यक्ति को खांसी की समस्या भी होती है।

*दमा के लक्षण*

जब रोग बहुत अधिक बढ़ जाता है तो दौरा आने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक दिक्कत आती है तथा व्यक्ति छटपटाने लगता है।
दमा रोग से पीडि़त रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।
पीडि़त रोगी को सांस लेनें में बहुत अधिक कठिनाई होती है।
यह रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है।

रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।
रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखडऩे के दौरे पडऩे लगते हैं।
सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।
सांस लेते समय हल्की-हल्की सीटी बजने की आवाज भी सुनाई पड़ती है।
सांस लेने तथा सांस को बाहर छोडऩे में काफी जोर लगाना पड़ता है

*दमा रोग होने के कारण *

अस्थमा कई कारणों से होता है कई बार यह जेनेटिक तो कई बार आनुवांशिक भी हो सकता है। कई अन्य कारण निम्न हैं- औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ़ सूख जाने से दमा हो जाता है। खान-पान के गलत तरीके से यह रोग हो सकता है। मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय के कारण भी दमा होने का एक कारण है। खून में किसी प्रकार से दोष उत्पन्न हो जाने के कारण भी दमा हो सकता है। नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करना भी इस रोग का कारण है।

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खांसी, जुकाम तथा नजला रोग अधिक समय तक रहने से दमा हो सकता है। भूख से अधिक भोजन खाने से दमा हो सकता है। मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने से यह रोग हो सकता है।फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी, स्नायुमण्डल में कमजोरी तथा नाकड़ा रोग हो जाने के कारण दमा हो जाता है।

मनुष्य की श्वास नलिका में धूल तथा ठंड लग जाने के कारण भी दमा हो सकता है। धूल के कण, खोपड़ी के खुरण्ड, कुछ पौधों के पुष्परज, अण्डे तथा ऐसे ही अन्य पदार्थों का भोजन में अधिक सेवन करने के कारण यह रोग हो सकता है। मनुष्य के शरीर की पाचन नलियों में जलन उत्पन्न करने वाले पदार्थों का सेवन करने से भी दमा हो सकता है।

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मल-मूत्र के वेग को बार-बार रोकने से यह रोग हो सकता है। गर्द, धुआं, गंदगी, बदबू, गंदे बिस्तर, पुरानी किताबें और कपड़ों की झाड़, खेतों की झाड़, सख्त सर्दी, बरसात, जुकाम, फ्लू, आदि सूक्ष्म कणों का सांस द्वारा फेफड़ों में जाने से दमा हो सकता है।

वातावरण में प्रदूषण से होने वाली एलर्जी
इसके अलावा कई लोगों में कुछ निश्चित दवाओं (एस्पिरीन और बेटा- ब्लॉकर्स) के सेवन से भी दमा के रिस्क फैक्टर्स बढ़ सकते हैं।

अत्यधिक भावनात्मक अभिव्यक्तियां (जैसे चीखने-चिल्लाने या फिर जोरदार तरीके से हंसना भी) भी कुछ लोगों में दमा की समस्या को बढ़ाकर दौरे की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।
अस्थमा या एलर्जी का पारिवारिक इतिहास (आनिवांशिक दमा)

जन्म के समय कम वजन और समय से पहले बच्चों का जन्म, जन्म के पहले और / या जन्म के बाद तंबाकू के धुएं के संपर्क भीड़, वायुप्रदूषण, धूल (घर या बाहर की) या पेपर की डस्ट, रसोई का धुआं, नमी, सीलन, मौसम परिवर्तन, सर्दी-जुकाम, धूम्रपान, फास्टफूड्स, तनाव व चिंता, पालतू जानवर के संपर्क में रहना और पेड़-पौधों और फूलों के परागकणों (पौधे के फूलों में पाये जाने वाले सूक्ष्म कणों को परागकण कहते हैं) आदि को शामिल किया जाता है।

*अस्थमा से बचाव

अस्थमा के रोगी को विपरीत माहौल में बेहद संभल कर रहना चाहिए। मौसम बदलते समय अपना अच्छे से ख्याल रखना चाहिए। इसके साथ ही कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए जैसे:
रोगी को गर्म बिस्तर पर सोना चाहिए। धूम्रपान नहीं करना चाहिए। भोजन में मिर्च-मसालेदार चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। धूल तथा धुंए भरे वातावरण से बचना चाहिए। मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगडों से बचना चाहिए।
शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

*अस्थमा के उपचार के लिए होमियोपैथिक औषधियां*

अस्थमा के उपचार के लिए अनेक होमियोपैथिक औषधियां बेहद उपयोगी हैं। अस्थमा के गम्भीर दौरे के खत्म होने के बाद होमियोपैथी उपचार लेने से भविष्य में होनेवाले अस्थमा की बारंबारता और तीव्रता घट जाती है। अस्थमा के उपचार के लिए उपयोग में आनेवाली औषधियों में से कुछ सामान्य औषधियां —

बारंबारता और तीव्रता घट जाती है

अर्सेनिकम अलबम (अर्सेनिकम) : इस दवा का उपयोग सामान्य तौर पर एक एक्यूट अस्थमा के रोगी के लिए किया जाता है। इसका उपयोग आम तौर पर बैचेनी, भय, कमज़ोरी और आधी रात को या आधी रात के बाद इन लक्षणों का बढना, जैसे लक्षणों से पीडित मरीज़ों के लिए किया जाता है।

एक्यूट अस्थमा के रोगी

हाऊस डस्ट माईट (हाऊस डस्ट माईट) : इस दवा का उपयोग अक्सर ऐसे मरीज़ो के लिए किया जाता है, जिन्हें घर में होनेवाली धूल से एलर्जी होती है। चूंकि लोगों में धूल की एलर्जी होना आम बात है, इस दवा को अस्थमा के एक गम्भीर दौरे के लिए एक महत्वपूर्ण उपचार माना जाता है।

धूल की एलर्जी होना आम बात है

स्पोंजिआ (रोस्टेड स्पंज) : यह दवा उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए उपयोग में लाई जाती है, जिनको बेहद कष्टदायी खांसी होती है, और छाती में बहुत कम या बिल्कुल भी कफ़ नहीं होता है। इस प्रकार का अस्थमा एक व्यक्ति को ठंड लगने के बाद शुरू होता है। इन मरीज़ो में अक्सर सूखी खांसी होती है।

बिल्कुल भी कफ़ नहीं होता है

लोबेलिआ (भारतीय तंबाकू) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन्हें सांस की घरघराहट के साथ एक लाक्षणिक (टिपिकल) अस्थमा का दौरा पडता है। (इसमें छाती में दबाव का एक अहसास और सूखी खांसी भी शामिल है)

सेमबकस नाइग्रा (एल्डर) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों में सांस की घरघराहट की आवाज़ के साथ दम घुटने के लक्षण दिखाई देते हैं, खासकर यदि ये लक्षण आधी रात को या आधी रात के बाद, या लेटने के दौरान या जब मरीज़ ठंडी हवा के संपर्क में आते हैं, ऐसी स्थिति में अधिक बढते हैं।
इपेकक्युआन्हा (इपेकाक रूट) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिन लोगों की छाती में बहुत अधिक मात्रा में बलगम होता है।

अस्थमा से पीडित लोगों के लिए बेहद फायदेमन्द है

एंटीमोनियम टेर्टारिकम (टार्टर एमेटिक) : इस दवा का उपयोग उन अस्थमा से पीडित बुजुर्गों और बच्चों के लिए बेहद फायदेमन्द है, जिनकी पूर्ण श्वसन-प्रश्वसन प्रक्रिया में शिथिलता या तेज़ी हो।चामोमिल्ला ,ब्रायोनिआ (व्हाईट ब्रायोनी), काली बायच्रोमिकम (बायच्रोमेट ऑफ़ पोटाश), नक्स वोमिका (पोइजऩ नट) जैसी दवाईयां अस्थमा के उपचार के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। नैदानिक जांच से पता चलता है कि अस्थमा के उपचार के लिए होमियोपैथिक दवाईयां असरकारक होती हैं।

पीडित बुजुर्गों और बच्चों के लिए बेहद फायदेमन्द है,

अस्थमा एक गम्भीर बीमारी है, जिसे एक प्रशिक्षित होमियोपैथिक चिकित्सक की देखरेख में ठीक किया जा सकता है। होमियोपैथिक औषधियां दीर्घकालिक अस्थमा में लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं। इसलिए योग्य होमिओपैथिक चिकित्सक की सलाह से अस्थमा पर नियंत्रण पाया जा सकता है। कई रोगी मेरे द्वारा उपचार कराकर ठीक हो गए है। और कई रोगियों का उपचार चल रहा है।

     -डॉ उत्कर्ष त्रिवेदी
लिल्ली चौक पुरानी बस्ती बरई मंदिर रोड़, रायपुर छ्त्तीसगढ़

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