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म्यांमार बना नई वैश्विक खनिज जंग का मैदान, चीन–अमेरिका–भारत की रणनीतिक टक्कर तेज

दुनिया भर में रेयर अर्थ एलिमेंट्स को लेकर चल रही वैश्विक होड़ अब नए मोड़ पर पहुंच गई है। सुपरपावर देशों के बीच बढ़ती जियोपॉलिटिकल तनातनी ने दक्षिण-पूर्व एशिया के एक अशांत देश म्यांमार को वैश्विक रणनीति के केंद्र में ला खड़ा किया है।

म्यांमार के कचिन राज्य में पाए जाने वाले डिस्प्रोसियम, टर्बियम जैसे रेयर अर्थ एलिमेंट्स विंड टर्बाइन, ईवी बैटरी से लेकर हाई-टेक डिफेंस सिस्टम तक में अहम भूमिका निभाते हैं। यही वजह है कि सैन्य शासन, जातीय विद्रोह और अनिश्चित राजनीतिक हालातों से जूझ रहा यह क्षेत्र अब दुनिया के सबसे गर्म जियोपॉलिटिकल हॉटस्पॉट्स में शामिल हो गया है।

2024 में करीब 31,000 मीट्रिक टन उत्पादन के साथ म्यांमार दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा REE उत्पादक बन गया है। चीन और अमेरिका की निगाहें गड़े होने के बाद अब यह इलाका सिर्फ खनन केंद्र नहीं, बल्कि रणनीतिक दांव-पेंच का युद्धक्षेत्र बन चुका है।

कचिन में खनिजों की असली लड़ाई

कचिन के चिपवी और पंगवा इलाकों में भारी मात्रा में रणनीतिक धातुएं मौजूद हैं, और यही वजह है कि 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद यहां की ‘वॉर इकॉनमी’ तेजी से फली-फूली। खनन गतिविधियां कई गुना बढ़ीं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली तकनीकों ने स्थानीय विरोध को उभारा।
साल 2023 के अंत तक कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) ने सेना के 200 से ज्यादा ठिकाने कब्जा लिए और प्रमुख खनन इलाकों पर नियंत्रण जमाया।

2024 में सक्रिय खदानों की संख्या 130 से बढ़कर 370 हो चुकी है। चीन ने मौके को भांपते हुए KIA से नया करार भी कर लिया, जिसके तहत खनिजों की बड़ी खेप चीन के युन्नान की प्रोसेसिंग यूनिट्स में जाती है। 2023 में चीन का इम्पोर्ट 41,700 मीट्रिक टन तक पहुंच गया, जिसकी वैल्यू करीब 1.4 अरब डॉलर थी।

भारत की चुनौती और रणनीति

दुर्लभ खनिजों के 90% उत्पादन पर चीन की पकड़ भारत के लिए बड़ी चिंता है। घरेलू उत्पादन अभी 3,000 टन से कम और तकनीकी क्षमता भी सीमित है। इसी कारण भारत ने क्रिटिकल मिनरल मिशन के तहत 2030 तक 18,000 करोड़ रुपये निवेश का लक्ष्य रखा है।

म्यांमार की बदलती स्थिति को देखते हुए भारत अब दोनो पक्षों—सैन्य शासन और KIA—से अलग-अलग बातचीत कर रहा है। जुलाई 2025 में भारत द्वारा KIA से लिए गए सैंपल बताता है कि नई दिल्ली ने भी व्यावहारिक कूटनीति अपनाते हुए म्यांमार में मौजूद वास्तविक शक्ति-संतुलन को स्वीकार कर लिया है।

म्यांमार में रेयर अर्थ मैटेरियल पर कब्जे की यह जंग सिर्फ संसाधनों की नहीं, बल्कि भविष्य की टेक्नोलॉजी, वैश्विक प्रभाव और रणनीतिक ताकत की लड़ाई बन चुकी है—और भारत के लिए इसका सही समय पर हिस्सा बनना बेहद जरूरी है।

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