
रायपुर। 2 मई की सुबह, जब सूरज की किरणें अभी गरियाबंद जिले के घने जंगलों की ओट से बाहर झाँक रही थीं, तभी सन्नाटे को चीरती हुई गोलियों की गूंज गहराती चली गई। मैनपुर के जुगाड़ और शोभा थाना क्षेत्र की सीमाओं पर कुछ अनदेखा, कुछ अनसुना घट रहा था। यह कोई आम मुठभेड़ नहीं थी — यह एक साज़िश थी, जो महीनों से जंगल की छांव में पल रही थी, और अब अपने अंजाम की ओर बढ़ रही थी।
सुरक्षा बल सर्चिंग पर निकले थे, लेकिन जैसे ही उन्होंने कदम बढ़ाया, पेड़ों की ओट से छिपी आँखें जाग उठीं। नक्सलियों ने घात लगाकर हमला बोल दिया। गोलियों की वह बौछार किसी शिकार की नहीं, बल्कि एक युद्ध की शुरुआत थी। पर जवाबी कार्रवाई ने कहानी को मोड़ दे दिया।
जब धुआं छंटा, तो जमीन पर पड़ा था एक नाम, जो सिर्फ जंगलों में ही नहीं, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों की फाइलों में भी खून से दर्ज था— योगेश उर्फ साकेत उर्फ आयतु। 8 लाख के इनामी इस खूंखार नक्सली की कहानी अब खत्म हो चुकी थी। यह वही था, जिसने बीजापुर के गंगालूर से निकलकर नक्सली हिंसा की कई पटकथाएं लिखी थीं।
एसपी निखिल राखेचा ने इस टकराव की पुष्टि की, और बताया कि वहां से बरामद हुआ arsenal किसी युद्धक्षेत्र का एहसास करा रहा था— SLR, 12 बोर की बंदूकें, गोलियां, मैगजीन, विस्फोटक, GBL, IED दवाइयाँ और वो सारी चीज़ें जो किसी गुप्त योजना का हिस्सा होती हैं।
आपको बता दें कि, जनवरी में मारे गए 16 नक्सलियों की मौत का बदला लेने की तैयारी चल रही थी। नुआपड़ा डिविजन को दोबारा जिंदा करने की साज़िश हो रही थी। बस्तर से आई एक खतरनाक टीम ने इसे अंजाम देने की ठानी थी लेकिन सुरक्षा बलों की सतर्कता ने जंगल की छाती में पलती इस साज़िश को समय रहते दबोच लिया।
इस मुठभेड़ ने सिर्फ एक इनामी नक्सली को नहीं मिटाया, बल्कि नक्सली नेटवर्क को भी एक ऐसा झटका दिया है, जिससे उबरना अब उनके लिए आसान नहीं होगा।