देशबड़ी खबरें

नईदिल्ली : कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी

नई दिल्ली : राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग को खारिज होने के बाद कांग्रेस इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाली है लेकिन, इस मामले में काफी पेच फंसा हुआ है। अगर विपक्ष नायडू के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करता भी है तो इसे सुनेगा कौन? पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान अटॉर्नी जनरल रहे वरिष्ठ वकील और राज्य सभा के सदस्य एमपी पराशरन का कहना है कि उपराष्ट्रपति द्वारा महाभियोग प्रस्ताव खारिज होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

नायडू के फैसले को चुनौती, तो मामला सुनेगा कौन?

सुप्रीम कोर्ट में अपील में कई पेचीदगियां सामने आएंगी। नियमों के अनुसार इस मामले के प्रशासनिक पहलू को कौन देखेगा। चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं तो क्या वह खुद अपने खिलाफ याचिका सुनेंगे? महाभियोग के नोटिस में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों का भी नाम शामिल है और इस तरह वे भी इसमें एक पक्ष बन गए हैं।

एक्सपर्ट की अलग-अलग राय

इस बाबत सीनियर एडवोकेट सी एस वैद्यनाथन 1991 में सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट का हवाला देते हैं। इसके मुताबिक केस का जुडिशल रिव्यू हो सकता है क्योंकि उपराष्ट्रपति प्रस्ताव के संसद भेजे जाने से पहले मामले में सिर्फ स्टैट्यूटरी अथॉरिटी की भूमिका निभा रहे थे। स्टैट्यूटरी प्रोसेस पूरा होने के बाद मामला संसद के विशेषाधिकार क्षेत्र में चला जाएगा और उसमें न्यायपालिका तब तक दखल नहीं दे पाएगी जब तक कि प्रक्रिया पूरा नहीं हो जाती। इसके बाद महाभियोग का सामना करने वाले जज अपनी बर्खास्तगी के प्रस्ताव को अदालत में चुनौती दे सकेंगे।

कांग्रेस की याचिका से पैदा होगी अप्रिय स्थिति

इस मामले में सीनियर एडवोकेट राजू रामचंद्रन कहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से ऐसा पिटीशन लाए जाने पर अप्रिय स्थिति पैदा होगी। उन्होंने पूछा, क्या यहां मास्टर ऑफ द रोस्टर वाला सिद्धांत यहां लागू होगा? इस मामले में आगे क्या हो सकता है, इस बाबत अनुमान लगाने वाले वकीलों का कहना है कि अगर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हितों के टकराव के चलते मामले की सुनवाई नहीं कर सकेंगे तो बाकी जज भी नहीं कर पाएंगे।

मास्टर ऑफ द रोस्टर वाला सिद्धांत यहां लागू होगा

चीफ जस्टिस के बाद पदानुक्रम में सबसे वरिष्ठ चार जजों में जस्टिस जस्ती चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसफ शामिल हैं। ये चारों जज ने जस्टिस लोया जैसे संवेदनशील राजनीतिक मुकदमों में सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस के अपनी पसंद के जूनियर जजों को चुनने के खिलाफ इसी साल 12 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।

तो जस्टिस सीकरी सुनेंगे केस?

अगर चीफ जस्टिस प्रशासनिक और न्यायिक दोनों साइड से मामले की सुनवाई से अलग हो जाते हैं तो सुनवाई के लिए पिटीशन पदानुक्रम में सबसे सीनियर जज जस्टिस ए के सीकरी के पास जाएगी। चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया को राजनेता जिस तरह पब्लिक में ले गए हैं, उसे लेकर जस्टिस सीकरी पहले अपनी चिंता जता चुके हैं। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने मामले के निपटारे के लिए अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया की मदद मांगी है। याचिका में अदालत से तब तक के लिए महाभियोग प्रक्रिया को गोपनीय रखने के लिए दिशा-निर्देश तय करने का अनुरोध किया गया है जब तक कि जज दोषी साबित नहीं होते।

पूर्व अटॉर्नी जनरल की अलग राय

उधर, पराशरन ने बताया कि लोकसभा स्पीकर या राज्य सभा के चेयरमैन एक जज के खिलाफ महाभियोग का नोटिस मिलने पर लोगों से बात कर सकते हैं और जिस तरह के प्रमाण मौजूद होते हैं उसकते तहत नोटिस को स्वीकार या खारिज करने का फैसला कर सकते हैं। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

महाभियोग का नोटिस मिलने पर लोगों से बात कर सकते हैं

उन्होंने कहा, यह पूरी तरह से स्पीकर या चेयरमैन के अधिकारक्षेत्र का मामला है कि सांसदों द्वारा लाए गए प्रस्ताव पर वह जांच कमिटी के गठन की जरूरत महसूस करते हैं या नहीं। अगर वह पाते हैं कि इस केस में प्रथमदृष्यटा कोई मामला नहीं बनता है और किसी प्रकार के जांच की जरूरत नहीं और वह नोटिस खारिज कर देते हैं, तो मामला यहीं खत्म हो जाता है।

जांच कमिटी के गठन की जरूरत महसूस करते हैं या नहीं

9 अगस्त 1983 से 8 दिसंबर 1989 तक देश के अटॉर्नी जनरल रहे पराशरन ने 27 अगस्त 1992 के जस्टिस जे. एस. वर्मा के नेतृत्व वाले एक संविधान पीठ के जजमेंट का हवाला देते हुए कहा, सही तरीके से शुरू की गई इस प्रक्रिया में स्पीकर या चेयरमैन यह फैसला कर सकते हैं कि आरोपों की जांच हो या नहीं। अगर वह इस मामले में कार्रवाई नहीं करने का फैसला करते हैं तो केस यहीं खत्म हो जाता है। बता दें कि 2012 में राष्ट्रपति ने पराशरन को राज्य सभा का नॉमिनेटेड सदस्य बनाया था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button