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हसदेव के जंगल पर सियासत की आरी: कोयला खनन पर कांग्रेस-भाजपा आमने-सामने

रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के घने जंगलों में कोयले की खदानें अब सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि सियासत का सबसे गर्म मैदान बन चुके हैं। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर जंगल कटाई को लेकर आरोप-प्रत्यारोप की झड़ी लगा रहे हैं—पर असल सवाल ये है कि कौन सच बोल रहा है और कौन जंगल की कीमत पर सत्ता की राजनीति खेल रहा है?

भाजपा का पलटवार: कांग्रेस ने ही शुरू की जंगल कटाई की पटकथा?

राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप ने कुछ पुराने दस्तावेजों के सहारे दावा किया कि हसदेव अरण्य क्षेत्र को नो-गो ज़ोन घोषित करने के बावजूद कांग्रेस की यूपीए सरकार ने खुद 2010 में जंगल काटने की इजाज़त दी थी। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश थे।

मंत्री ने आरोप लगाया कि भूपेश बघेल खुद खदान आवंटन के समर्थक रहे हैं और जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने अडाणी समूह को कोल ब्लॉक ऑपरेट करने की छूट दी। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “क्या भूपेश बघेल अब राजीव भवन और अपने घर की बिजली बंद करेंगे?”

कांग्रेस का पलटवार: जंगल के नाम पर झूठ का कारोबार

वहीं, कांग्रेस का कहना है कि 2015 में खदानों की नीलामी मोदी सरकार ने शुरू की थी, और परसा, कांता बासन जैसे कोल ब्लॉक NDA सरकार के कार्यकाल में आवंटित किए गए। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने वन मंत्री कश्यप पर निशाना साधते हुए कहा कि “आदिवासी होकर भी वे जंगल की कटाई का विरोध नहीं कर रहे, जबकि कांग्रेस सड़कों से लेकर सदन तक जंगल की लड़ाई लड़ रही है।”

बैज ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा अडाणी समूह के हितों की रक्षा कर रही है, और जब विधानसभा में हसदेव जंगल कटाई रोकने का प्रस्ताव पास किया गया, तब भाजपा के विधायक केंद्र सरकार के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोले।

सवालों की बौछार: कौन है जंगल का असली रक्षक?

भाजपा ने कांग्रेस से सीधे सवाल पूछे:

क्या कांग्रेस UPA कार्यकाल में लिए गए जंगल कटाई के फैसलों के लिए माफी मांगेगी?

क्या भूपेश बघेल खुद बिजली का त्याग करेंगे जैसा उन्होंने कहा था?

क्या कांग्रेस हर विवाद में अपने नेताओं के बचाव में उतरेगी?

तो वहीं कांग्रेस ने पूछा:

जब राजस्थान को कोयला खनन की इजाजत केंद्र की भाजपा सरकार ने दी, तो छत्तीसगढ़ की ज़मीन क्यों दी गई?

भाजपा आदिवासी समाज की भावनाओं का सम्मान क्यों नहीं कर रही?

क्या भाजपा आदिवासी भूमि को कॉर्पोरेट्स के हवाले करने पर आमादा है?

असल मुद्दा: जंगल या राजनीति?

इस पूरे टकराव में एक बात स्पष्ट है—हसदेव के जंगल सियासत के शिकार हो रहे हैं। दोनों दल एक-दूसरे के शासनकाल की फाइलें खोल रहे हैं, लेकिन जंगल, आदिवासी और पर्यावरण कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं।

सवाल यह नहीं है कि गलती पहले किसने की, सवाल यह है कि अब जंगल को कौन बचाएगा? आने वाले वक्त में हसदेव की हर कटती शाख और उजड़ती बस्ती यह गवाही देगी कि किसने उसे सचमुच बचाने की कोशिश की थी, और किसने जंगल के नाम पर वोट काटे।

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