नई प्रस्तुति: सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में EVM खुली, हारा हुआ प्रत्याशी बना विजेता — भारत की चुनाव प्रणाली पर फिर उठे सवाल

भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है, लेकिन अब इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईवीएम खोली गई और वोटों की गिनती हुई। यह अभूतपूर्व घटना हरियाणा के पानीपत जिले के बुआना लाखु गांव के पंचायत चुनाव से जुड़ी है। इस फैसले के बाद न केवल स्थानीय राजनीति में हलचल मच गई, बल्कि देशभर में चुनावी पारदर्शिता को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
क्या है मामला?
2 नवंबर 2022 को हुए सरपंच चुनाव में कुलदीप कुमार सिंह को विजेता घोषित किया गया था। लेकिन हारे हुए प्रत्याशी मोहित कुमार ने नतीजों को चुनौती दी और पुनर्मतगणना की मांग की। मामला अदालत से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट ने पहली बार आदेश दिया कि चुनाव में इस्तेमाल की गई ईवीएम की गिनती हो।
गिनती रजिस्टार की निगरानी में की गई, दोनों पक्ष मौजूद रहे और पूरी प्रक्रिया की वीडियो रिकॉर्डिंग हुई। परिणाम चौंकाने वाला रहा — मोहित कुमार को विजयी घोषित किया गया। यानी जिसे पहले हारा हुआ माना गया था, वह असल में जीता हुआ निकला।
ईवीएम की साख पर सवाल
इस घटना ने एक बार फिर ईवीएम की विश्वसनीयता और पारदर्शिता को लेकर बहस को हवा दी है। अगर कोर्ट के हस्तक्षेप के बिना गिनती नहीं होती, तो असली विजेता को शायद न्याय नहीं मिल पाता। यह उदाहरण बता रहा है कि तकनीकी प्रणाली में भी मानवीय निगरानी जरूरी है।
विपक्ष का हमला, BJP पर आरोप
इस मामले को लेकर विपक्ष ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर सीधा निशाना साधा है। तेजस्वी यादव ने कहा कि यह मामला बीजेपी की चुनावी धांधली और ईवीएम के दुरुपयोग की पोल खोलता है। अन्य विपक्षी दलों ने भी सवाल उठाए कि क्या चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष है या केवल एक दिखावा?
ईवीएम: समाधान या विवाद का जरिया?
ईवीएम को देश में भ्रष्टाचार और धांधली रोकने के लिए लाया गया था। लेकिन यह मामला दर्शाता है कि यदि ईवीएम में पारदर्शिता नहीं है, तो वह खुद विवाद का कारण बन सकती है। इस ऐतिहासिक फैसले ने चुनाव प्रणाली पर जनता के भरोसे की कसौटी खड़ी कर दी है।