रायपुर,(Fourth Eye New) समाज कल्याण विभाग अंतर्गत नि:शक्तजनों के लिए संचालित एक एनजीओ के नाम पर हुए 1 हजार करोड़ के घोटाले के मामले में सीबीआई ने भोपाल में छत्तीसगढ़ के 12 अधिकारियों के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर लिया है। हालांकि सीबीआई ने मामलें में किसी के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज नही किया है। यह एफ आईआर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डबल बैंच के आदेश के बाद दर्ज किया है। अब इस मामलें की जांच सीबीआई अपने स्तर पर करेगी तथा मामलें में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी।
ज्ञात हो कि इस मामले में रायपुर के कुशालपुर में रहने वाले कुंदन सिंह ठाकुर नाम के एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर किया था। याचिका में सेवानिवृत्त हो चुके प्रदेश के दो मुख्य सचिव और वर्तमान में कार्यरत आईएएस अधिकारियों पर राज्य स्रोत निशक्त जन संस्थान नामक संस्थान बनाकर सरकारी विभागों से हर महीने लाखों रुपए कर्मचारियों की सैलरी के नाम तथा अन्य कार्यों के लिए रुपये आहरित किये जाने का आरोप लगाया था। याचिकाकर्ता के मुताबिक राजधानी रायपुर के माना में चार हजार दिव्यांगों के उपचार के नाम पर घोटाले को अंजाम दिया गया। आरोपियों द्वारा उपचार के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किया गया लेकिन केवल कागजों पर। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ठाकुर को भी कर्मचारी बताकर उनके नाम से भी पैसे आहरित किया जा रहा था। जब उन्हें इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने सारे दस्तावेज इक_ा कर हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट की एकलपीठ न्यायमूर्ति मनींद्र श्रीवास्तव ने इस प्रकरण की सुनवाई के बाद माना था कि यह साधारण मामला नहीं है,
लिहाजा इसे जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया गया था और को डबल बेंच में ट्रांसफर कर दिया था। जिसकी सुनवाई डबल बैंच में हुई और समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत संचालित बताए गए एनजीओ को कागज़़ी मानते हुए हाईकोर्ट की डबल बेंच जिसमें जस्टिस प्रशांत मिश्रा और जस्टिस पी पी साहू शामिल हैं, के द्वारा सीबीआई को सात दिनों के भीतर एफआईआर दर्ज किए जाने के निर्देश दिए गए थे। इस मामलें में पूर्व आईएएस बी एल अग्रवाल समेत दो ने रिव्यू आवेदन दायर किया था, राज्य की ओर से भी बुधवार को रिव्यू का आवेदन दिया गया था। रिव्यू के दौरान सीबीआई की ओर से उपस्थित एएसजी गोपा कुमार ने कोर्ट को बताया कि सीबीआई इस मसले पर हाईकोर्ट के निर्देशानुसार एफआईआर दर्ज कर चुकी है। इसके साथ ही घोटाले में शामिल अधिकारियों के खिलाफ अलग से विभागीय जांच किये जाने का आदेश भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को दिया था।