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शेख हसीना को गैर-हाज़िरी में मौत की सजा: बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल, इतिहास के कई तानाशाहों जैसी गूँज

बांग्लादेश की सत्ता से बाहर हो चुकी पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 17 नवंबर 2025 को अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्यूनल ने मौत की सजा सुनाई। 2024 के छात्र आंदोलन पर हुए दमन के लिए उन्हें मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराया गया। फिलहाल भारत में निर्वासन झेल रहीं हसीना को यह फैसला उनकी गैर-हाज़िरी में सुनाया गया—और इसी के साथ बांग्लादेश की राजनीति में तूफ़ान खड़ा हो गया।

एक दौर में बांग्लादेश की ‘आर्थिक विकास की चेहरा’ कही जाने वाली हसीना का सफर सत्ता, विवाद, दमन और अब मौत की सजा तक आ पहुंचा। 2009 से 2024 तक पीएम रहीं हसीना ने देश को गारमेंट उद्योग की बदौलत वैश्विक मानचित्र पर ऊंचा उठाया, लेकिन सत्ता के अंतिम वर्षों में उन पर भ्रष्टाचार, लोकतंत्र को कमजोर करने और मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे।

2024 का छात्र आंदोलन उनके राजनीतिक करियर का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ। सरकारी नौकरियों के कोटा विरोध से जन्मा आंदोलन देशव्यापी विद्रोह में बदल गया। सरकार के दमन में संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 1,400 से अधिक लोग मारे गए—अधिकांश युवा छात्र। भारी दबाव के बाद 5 अगस्त 2024 को हसीना को इस्तीफ़ा देकर भारत भागना पड़ा।

ढाका की अदालत ने अब उन्हें तीन मामलों में दोषी पाया—उकसावा, हत्याओं का आदेश और अपराधियों पर कार्रवाई न करने के आरोप में। दो मामलों में फांसी और एक में उम्रकैद। पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल को भी फांसी सुनाई गई जबकि पूर्व पुलिस प्रमुख को पांच साल की सजा मिली।

अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल विजेता प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने इसे ‘ऐतिहासिक फैसला’ कहा, जबकि संयुक्त राष्ट्र ने मौत की सजा पर कड़ा विरोध जताया। भारत प्रतिक्रिया में संयमित है और प्रत्यर्पण पर चुप्पी साधे हुए है। क्या यह सजा कभी लागू होगी? यह सवाल अभी भी धुंध में है।

इतिहास में ऐसे नेता जिन्हें मिली मौत की सजा — और हसीना से समानताएं

सद्दाम हुसैन (इराक)

1982 के दजैल नरसंहार के लिए 2006 में फांसी।
समानता: प्रदर्शनकारियों पर दमन और सत्ता का दुरुपयोग।

मुअम्मर गद्दाफी (लीबिया)

2011 विद्रोह के बीच भीड़ ने बिना मुकदमे मार डाला।
समानता: युवाओं के विद्रोह ने सत्ता हिलाई।

निकोलस चाउशेस्कु (रोमानिया)

1989 में त्वरित ट्रायल के बाद फांसी।
समानता: जनता के उठे तूफ़ान ने शासन पलटा।

चार्ल्स टेलर (लायबेरिया)

2012 में युद्ध अपराधों के लिए 50 साल की सजा।
समानता: अंतरराष्ट्रीय अदालत में ट्रायल।

परवेज़ मुशर्रफ (पाकिस्तान)

2019 में राजद्रोह पर फांसी की सजा (गैर-हाज़िरी में), लागू नहीं हुई।
समानता: निर्वासन में रहकर सुनाया गया फैसला।

विदकुन क्विस्लिंग (नॉर्वे)

1945 में राजद्रोह के लिए फांसी।
समानता: राज्य के खिलाफ गंभीर अपराध।

जुल्फिकार अली भुट्टो (पाकिस्तान)

1979 में हत्या की साजिश में फांसी।
समानता: राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार बना लोकतांत्रिक नेता।

क्या यह न्याय है या बदले की आग?

मौत की सजा दुनिया में अब दुर्लभ है, लेकिन सत्ता संघर्ष के दौर में अक्सर यह राजनीतिक हथियार बन जाती है। हसीना का मामला भी बहस के केंद्र में है—क्या यह न्याय है, या नई सरकार द्वारा अतीत से निपटने का तरीका? आने वाले चुनावों और बांग्लादेश की स्थिरता पर इसका असर अवश्य पड़ेगा।

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