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एफ-35: अमेरिका का उड़ता सपना जो अब ज़मीन पर आ गिरा है

बुज़ुर्ग ठीक ही कह गए हैं — “लालच बुरी बला है”। पर लगता है, अमेरिका ने ये कहावत सुनी ज़रूर है, पर समझी नहीं। उसने सोचा था कि उसका एफ-35 फाइटर जेट पूरी दुनिया का पसंदीदा खिलौना बन जाएगा। लेकिन हकीकत ये है कि आज उसी “उड़ते सपने” को एक-एक कर देश ठुकरा रहे हैं — और वो भी बिना अफ़सोस के।

ट्रंप साहब की टैरिफ पॉलिसी और अमेरिका की “डील में मेरा ही फायदा हो” वाली शर्तों ने पहले भारत को दूरी बनाने पर मजबूर किया, और अब यूरोप भी आंख दिखा रहा है। अमेरिका को लगता था कि हथियारों की दुनिया में वही ‘बॉस’ रहेगा। लेकिन अब तो उसके सबसे महंगे प्रोजेक्ट एफ-35 को हर तरफ से ‘ना’ सुनने की आदत डालनी पड़ रही है।

यूरोप ने दिखाया आईना

स्पेन और स्विट्ज़रलैंड ने अमेरिका की तरफ आते हाथों को झटका दे दिया। एफ-35 नहीं चाहिए, धन्यवाद! स्पेन ने साफ कहा — हम यूरो फाइटर टाइफून लेंगे, और साथ ही FCAS प्रोजेक्ट में निवेश करेंगे। मतलब साफ है — अब यूरोप, यूरोपीय तकनीक में ही भरोसा दिखा रहा है। अमेरिका का ‘एकाधिकार’ वाला खेल अब नहीं चलेगा।

स्विट्ज़रलैंड की कहानी और भी दिलचस्प है। पहले 6 अरब स्विस फ्रैंक की डील फाइनल मानी जा रही थी, लेकिन फिर अमेरिका ने कहा — “भाई, कॉन्ट्रैक्ट फिक्स नहीं है। महंगाई बढ़ी है, तो कीमत भी बढ़ेगी।” ऊपर से ट्रंप ने स्विस चीज़ और घड़ियों पर टैरिफ ठोक दिया। अब स्विस नेता कह रहे हैं — या तो दाम घटाओ या डील भूल जाओ।

भारत: एफ-35 का इंतजार नहीं, जांच पड़ताल जारी

अमेरिका ने भारत को भी एफ-35 का चकाचौंध दिखाकर फुसलाने की कोशिश की। लेकिन भारत तो ‘शांति से सोचने वाला’ खिलाड़ी है। नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान एफ-35 को भारत के सामने खूब सजाया गया। लेकिन भारत ने न तुरंत हां कहा, न ना। और नतीजा? केरल एयरपोर्ट पर 37 दिन खड़ा रहा वो जेट, जैसे पूछ रहा हो — “कृपया मुझे पसंद कर लो?” और दो हफ्ते बाद हैंगर में घुसने की इजाजत मिली।

एफ-35 का भविष्य? सवालों में उलझा

अब तो आलम ये है कि एफ-35 कभी जापान में उतर रहा है, कभी कहीं क्रैश हो रहा है। अमेरिका का यह ‘सुपरजेट’ अब हकीकत में सुपर नहीं दिख रहा। जिस तकनीक और कीमत की धौंस अमेरिका देता था, अब वही उसकी कमजोरी बन गई है।

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