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इश्क, हथियार और जंगल छोड़कर गांव लौटे अमित-अरुणा की कहानी

रायपुर। जब पहली बार उसे देखा तो दिल में हलचल सी हुई। हिम्मत तो बहुत थी, लेकिन प्यार का इजहार करते वक्त कांप गया। वो नाराज हो गई, बात नहीं की। लेकिन दो महीने बाद बोली – ‘ठीक है, मंजूर है।’ उसी दिन से जिंदगी बदल गई।”

ये किस्सा किसी फिल्म का नहीं, सच्चाई है – नक्सली रहे अमित बारसा और उसकी पत्नी अरुणा की। कभी बंदूक थामे जंगलों में घूमने वाले दोनों ने अब हथियार छोड़ दिए हैं। बुधवार 9 जुलाई 2025 को दंतेवाड़ा पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। कहते हैं – “मोहब्बत जीने के लिए की थी, वहां मौत के सिवा कुछ नहीं था।”

जंगल में मोहब्बत की शुरुआत

अमित बारसा (26) छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के जगरगुंडा का रहने वाला है। 12-13 साल की उम्र में नक्सल संगठन में भर्ती कर लिया गया। हथियार चलाना सीखा। धीरे-धीरे प्रमोशन होता गया। पोलित ब्यूरो मेंबर और 1.5 करोड़ के इनामी वेणुगोपाल का सुरक्षा गार्ड बना। अरुणा लेकाम (26) बीजापुर जिले के गांव की रहने वाली थी। नक्सल संगठन में ACM कैडर की सदस्य थी।

2019 से पहले गढ़चिरौली में एक नक्सल मीटिंग के दौरान दोनों की पहली मुलाकात हुई। अरुणा गांवों से राशन जुटाने और कैंप का इंतजाम करने में लगी रहती थी। अमित को पहली नजर में ही अरुणा पसंद आ गई। मौका तलाशकर बात करता। जहां पोस्टिंग होती, वहीं अरुणा से मिलने का जुगाड़ करता।

इजहार, इनकार और हां

एक दिन हिम्मत जुटाकर प्रपोज किया। अरुणा हैरान रह गई। कुछ दिन तक उसने बात भी बंद कर दी। लेकिन दो महीने बाद कहा – “ठीक है, ये रिश्ता मंजूर है।”

इसके बाद दोनों की आंखों ही आंखों में बातें होने लगीं। साथी नक्सली छेड़ने लगे। बात लीडरों तक पहुंची। संगठन ने शादी की मंजूरी तो दे दी, लेकिन नसबंदी करवा दी। नियम था – नक्सली दंपति पैरेंट्स नहीं बन सकते। 2019 में नसबंदी हुई और शादी करवा दी गई।

प्यार था, परिवार चाहिए था – इसलिए छोड़ा जंगल

अमित कहता है – “हम माता-पिता बनना चाहते थे। लेकिन संगठन ने रोक दिया। वहां जिंदगी नहीं, सिर्फ मौत थी। अब गांव लौटकर जीना है। पिछले दो सालों से पुलिस का दबाव और एनकाउंटर बढ़े। दोनों ने तय किया कि हथियार छोड़ देंगे। जंगल से भागने का प्लान बनाया और आखिरकार 9 जुलाई को दंतेवाड़ा पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। अमित पर 8 लाख का इनाम था, अरुणा पर 5 लाख का। अमित AK-47 चलाता था। अरुणा इंसास और SLR भी चला लेती थी।

अब कैसी है योजना?

अमित कहता है – “सरेंडर कर दिया। अब खेती करेंगे। गांव में रहेंगे। बच्चों के साथ जिंदगी बिताएंगे। नसबंदी खुलवाना है। DRG में नहीं जाना चाहता। बस परिवार चाहिए, सुकून चाहिए।”दोनों दावा करते हैं कि किसी मुठभेड़ में शामिल नहीं रहे। अब बस काली वर्दी छोड़कर, खेत की हरियाली में जिंदगी काटना चाहते हैं।

कौन है वेणुगोपाल?

जिस नेता का अमित सुरक्षा गार्ड था, वो तेलंगाना का वेणुगोपाल है। उम्र करीब 65-70 साल। नक्सलियों के पोलित ब्यूरो मेंबर। बसवा राजू के एनकाउंटर के बाद महासचिव पद के दावेदारों में उसका नाम सबसे ऊपर है। अमित करीब 10 साल तक उसका भरोसेमंद गार्ड रहा।

हथियार छोड़कर लौटे अमित और अरुणा की ये कहानी बताती है – मोहब्बत बंदूक से बड़ी हो सकती है। जंगल की हिंसा छोड़कर गांव लौटना मुश्किल था। लेकिन उन्होंने किया। अब उनकी ख्वाहिश है – एक परिवार हो, अपना खेत हो, और जिंदगी हो – जिसमें मौत नहीं, उम्मीद हो।

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