सपनों की चाबी: जब सहोद्रा बाई का घर बना गर्व की मिसाल

रायपुर। जांजगीर-चांपा जिले के पुछेली खपरीडीह गाँव में उस दिन कुछ खास था। धरती आबा जनजातीय उत्कर्ष अभियान के मंच से जब सहोद्रा बाई धनुवार के हाथों में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) की चाबी सौंपी गई, तो वह सिर्फ एक चाबी नहीं थी—वह उम्मीद की, आत्मसम्मान की और एक सुरक्षित भविष्य की चाबी थी।
सहोद्रा बाई मुस्कुराईं, और मासूमियत से बोलीं, “चाबी तो दे दी आपने, लेकिन ताला नहीं दिया।” इस भोली मुस्कान ने मंच पर बैठे लोगों से लेकर गाँव के हर कोने तक एक मीठी लहर दौड़ा दी। वह पल सिर्फ उनका नहीं था, बल्कि पूरे गाँव के लिए एक जश्न बन गया।
पाँच साल पहले पति का साया सिर से उठ चुका था। तीन बेटियाँ और चार बच्चे, जो अब अपने-अपने घर बसाकर दूर हो चुके हैं। लेकिन अब सहोद्रा बाई अकेली नहीं हैं—सरकार की योजनाएँ उनके साथ हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना से मिला पक्का घर, उज्ज्वला से रसोई की सुविधा, महतारी वंदन और पेंशन योजना से आर्थिक सुरक्षा, और मनरेगा के तहत 90 दिनों की मजदूरी ने उनके जीवन को एक नई मजबूती दी है।
जब घर बोलने लगा संस्कृति की भाषा
सिर्फ ईंट-पत्थर नहीं, सहोद्रा बाई ने अपने सपनों को रंगों से सजाया है। घर की दीवारों पर छत्तीसगढ़ की जनजातीय कला, वाद्य यंत्रों की छवियाँ, पारंपरिक नृत्य और लोकसंस्कृति की झलकें देख हर आगंतुक ठहर जाता है। उनका घर अब एक जीवंत कला संग्रहालय-सा लगता है, जो ग्रामीण संस्कृति की आत्मा को जीवित रखे है।
गाँव में यह घर अब सिर्फ एक मकान नहीं, बल्कि प्रेरणा बन गया है। उन्होंने घर के सामने अपनी माँ के नाम एक आम का पेड़ लगाया है—माँ के स्नेह और प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक। साथ ही जल संरक्षण के लिए एक सोखता गड्ढा भी तैयार किया है।
आभार और आत्मनिर्भरता की मिसाल
सहोद्रा बाई के लिए यह घर अब एक कहानी है—संगर्ष से सफलता की। उन्होंने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों का आभार जताया, लेकिन उनकी आँखों में जो चमक थी, वह खुद एक संदेश था: जब इरादे मजबूत हों और साथ देने वाला हाथ हो, तो कोई भी सपना सच हो सकता है।