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नई दिल्ली : निपाह वायरस की चपेट में आए तो नहीं हो पाएगा आपका इलाज

नई दिल्ली : दक्षिण भारत में निपाह वायरस के दस्तक से दिल्ली तक हंडकंप मच गया। केरल में इस जानलेवा बीमारी से अब तक नौ लोगों की मौत हो चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए डॉक्टरों की एक टीम को तैयार करने का निर्देश दिया, जिसे केरल रवाना कर दिया गया।निपाह वायरस के कारण सबसे पहले कोझिकोड जिले में एक ही परिवार के तीन लोगों की मौत हुई थी। इस परिवार का इलाज कर रही नर्स ने भी तेज बुखार के कारण दम तोड़ दिया। जिले के अस्पतालों में जांच कराने वालों की लंबी कतार लगी है।राज्य के विभिन्न अस्पतालों में 12 लोग भर्ती हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इस वायरस से प्रभावित लोगों को सांस लेने की दिक्कत होती है। बुखार, सिरदर्द भी शुरुआती लक्षण हैं।

  इलाज के लिए कोई दवा नहीं

इसके इलाज के लिए न तो कोई दवा है और न ही इससे बचाव के लिए कोई टीका ईजाद किया गया है। समय रहते सही उपचार और लगातार निगरानी से ही जान बच सकती है। केरल के कोझिकोड़ में करीब 25 लोगों के इस वायरस के चपेट में आने की सूचना है। मामले की संजीदगी को देखते हुए केंद्र सरकार ने सक्रियता दिखाई। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा के मुताबिक डॉक्टरों की ये टीम नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) के निदेशक के तहत कार्य करेगी। उनके मुताबिक केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय केरल के स्वास्थ्य विभाग के साथ संपर्क में है।

संक्रमित रोग इससे बचाव के लिए कोई टीका ईजाद किया गया है

निपाह वायरस एक तरह की संक्रमित रोग है, जो कि एक जानवर से फलों और फिर व्यक्तियों में फैलता है। इससे व्यक्ति की मौत हो सकती है। चिंता की वजह यह है कि निपाह के इलाज के लिए अब तक किसी सटीक इलाज की खोज नहीं हो सकी है।

भारत में निपाह का अटैक

भारत में निपाह वायरस का हमला पहली बार नहीं है। देश में निपाह वायरस का का पहला मामला वर्ष 2001 के जनवरी और फरवरी माह में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में दर्ज किया गया है। इस दौरान 66 लोग निपाह वायरस से संक्रमित हुए थे। इनमें से उचित इलाज न मिलने की वजह से 45 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, निपाह वायरस का दूसरा हमला वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के नदिया में दर्ज किया गया। उस वक्त पांच मामले दर्ज किए गए थे, इसमें से पांचों की मौत हो गई थी।

 कैसे फैलता है रोग

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, निपाह वायरस चमगादड़ से फलों में और फलों से इंसानों और जानवरों में फैलता है। चमगादड़ और फ्लाइंग फॉक्स मुख्य रुप से निपाह और हेंड्रा वायरस के वाहक माने जाते हैं। यह वायरस चमगादड़ के मल, मूत्र और लार में पाया जाता है। आरएनए या रिबोन्यूक्लिक एसिड वायरस परमिक्सोविरिडे परिवार का वायरस है, जो कि हेंड्रा वायरस से मेल खता है। ये वायरस निपाह के लिए जिम्मेदार होता है। यह इंफेक्शन फ्रूट बैट्स के जरिए फैलता है। शुरुआती जांच के मुताबिक खजूर की खेती से जुड़े लोगों को ये इंफेक्?शन जल्द ही अपनी चपेट में ले लेता है।

 कब-कब दर्ज किए गए निपाह के मामले

1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निपाह में इसके मामले सामने आए थे। इसके एक वर्ष बाद वर्ष 1999 में सिंगापुर में निपाह वायरस के मामले दर्ज किए गए। हालांकि वायरस के उत्पत्ति स्थल कांपुंग सुंगई निपाह के आधार पर इसका नाम निपाह वायरस रखा गया। इसके बाद वर्ष 2004 में निपाह वायरस का मामला बांग्लादेश में दर्ज किया गया। इस वायरस का पहला मामला मलेशिया के पालतू सुअरों में पाया गया। इसके बाद वायरस अन्य पालतू जानवरों बिल्ली, बकरी, कुत्ता, घोड़ों और भेडों में फैलता चला गया। इसके बाद निपाह वायरस का हमला मनुष्यों पर हुआ।

 निपाह वायरस के लक्षण

निपाह वायरस से संक्रमित मनुश्य को आमतौर पर बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, मानसिक भ्रम, कोमा, विचलन होता है। निपाह वायरस से प्रभावित लोगों को सांस लेने की दिक्कत होती है और साथ में जलन महसूस होती है। वक्त पर इलाज नहीं मिलने पर मौत भी सकती है। इंसानों में निपाह वायरस एन्सेफलाइटिस से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से ब्रेन में सूजन आ जाती है।

उपचार डॉक्टरों के मुताबिक कुछ मामलों में 24-28 घंटे के अंदर लक्षण बढऩे पर मरीज कोमा में भी चला जाता है

निपाह वायरस का इलाज खोजा नहीं जा सका है। इसी वजह से मलेशिया में निपाह वायरस से संक्रमित करीब 50 फीसद लोगों की मौत हो गई। हालांकि प्राथमिक तौर पर इसका कुछ इलाज संभव है। हालांकि रोग से ग्रस्त लोगों का इलाज मात्र रोकथाम है। इस वायरस से बचने के लिए फलों, खासकर खजूर खाने से बचना चाहिए। पेड़ से गिरे फलों को नहीं खाना चाहिए। यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैलता है। इसे रोकने के लिये संक्रमित रोगी से दूरी बनाए रखने की जरूरत होती है। मरीज का देखभाल वायरस से ठीक करने का एकमात्र तरीका है। संक्रमित जानवर खासकर सुअर को हमेशा अपने से दूर रखें।

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