छत्तीसगढ़ में इस जगह मिली उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी

छत्तीसगढ़ में उड़ने वाली दुर्लभ गिलहरी मिली है. वह अपने पंजों के फ र को पैराशूट की तरह इस्तेमाल कर उड़ सकती है। सामने और पीछे के पैरों के बीच फैली त्वचा व झिल्ली का उपयोग कर लंबी दूरी की छलांग लगा सकती है। फु र्तीली व शर्मीली इतनी कि हल्की सी आहट पाते ही पलभर में खुद को छिपा भी लेती है।
यह दुर्लभ उडऩ गिलहरी की खासियत है। महत्वपूर्ण यह है कि छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के जंगल में यह दुर्लभ गिलहरी मिली है। विशेषज्ञों के मुताबिक जिले के जंगलों में पहले इनकी संख्या ज्यादा थी, लेकिन कटते वन व ग्लोबल वार्मिंग के कारण कम होने लगी है। इन्हें वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के शेड्यूल-टू में दर्ज किया गया है।
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दरअसल, दुर्लभ उडऩ गिलहरी मदनपुर क्षेत्र में घायल अवस्था में मिली है। उसके पैर में हल्की चोट के निशान हैं। गहरे धूसर रंग की यह गिलहरी रात्रिचर जीवों में शामिल है। यह जीव अपने पंजों व फ र से उड़ान भरने में सक्षम है। इसे प्राथमिक इलाज के बाद बिलासपुर स्थित कानन पेंडारी चिडिय़ाघर भेज दिया है।
गिलहरी की यह प्रजाति बेहद शर्मिले स्वभाव की है। किसी भी जीव की आहट पाते ही कुछ ही क्षणों में खुद को पत्तियों, पेड़ के खोल या चट्टान के गड्ढों में बड़ी फू र्ति से छिपा लेती है। इनके घोसले पेड़ की छाल, फ र, काई और पत्तियों के साथ बने होते हैं। यही वजह है कि यह अब तक नहीं देखी जा सकी।
गौरतलब है कि इससे पहले राज्य में कांकेर जिले के कोसरोंडा जंगल में सर्चिंग पर गए एसएसबी के जवानों को उडऩे वाली गिलहरी की यह प्रजाति 26 मई 2018 में मिली थी।
फ्लाइंग गिलहरी पेटोरिस्ता जेंथोटिस जीनस क्लैमायफ ोरस की एकमात्र प्रजाति है, जो शुष्क पर्णपाती व सदाबहार वन में निवास करती है। मुख्यत: फ लाहारी ही होती है। लेकिन भोजन की कमी होने पर कभी-कभी कीड़े और लार्वा भी खा लेती है। सेवानिवृत्त डीएफ ओ हेमंत पांडेय ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर में तेंदू, आंवला, हर्रा, बहेरा व बेर जैसे फ ल जंगल में कम हो जाते हैं। उडऩ गिलहरी को भोजन के लिए घने वन से बाहर आना होता है। ऐसे में कई बार भटक कर वे आबादी या सड़क के आसपास पहुंच जाती हैं और लोगों की नजर में आ जाती हैं।