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अमित शाह के नए विधेयकों पर बवाल, विपक्ष ने बताया लोकतंत्र पर हमला

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पेश किए गए तीन नए विधेयकों ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। इन विधेयकों में एक बड़ा प्रावधान यह है कि यदि कोई मंत्री, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री किसी गंभीर अपराध या भ्रष्टाचार के आरोप में लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो उसे अपने पद से हटना पड़ेगा।

विपक्ष ने इस प्रस्ताव को लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताया है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों का कहना है कि जब तक किसी पर अपराध साबित न हो, वह कानूनी तौर पर निर्दोष माना जाता है। ऐसे में केवल जेल में रहने के आधार पर किसी निर्वाचित प्रतिनिधि की कुर्सी छीनना संविधान की भावना के खिलाफ है।

क्या यह टारगेटिंग है? विपक्ष का सीधा आरोप

विपक्षी नेताओं का आरोप है कि 2014 में एनडीए सरकार के आने के बाद से जांच एजेंसियों का इस्तेमाल चुनिंदा नेताओं को निशाना बनाने में किया जा रहा है। पिछले 11 वर्षों में विपक्ष से जुड़े कम से कम 13 मंत्रियों को उनके पद पर रहते हुए गिरफ्तार किया गया — जिनमें से अधिकतर को ईडी (ED) और सीबीआई (CBI) ने पकड़ा। इनमें से ज्यादातर पर PMLA (मनी लॉन्ड्रिंग) के तहत कार्रवाई हुई है।

दिलचस्प बात यह है कि इन गिरफ्तारियों में भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टियों के किसी भी मंत्री का नाम नहीं है। बीजेपी के केवल एक नेता — राकेश सचान — को दोषी ठहराया गया, लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया था और वह अभी भी योगी सरकार में मंत्री हैं।

विपक्षी नेताओं की लंबी लिस्ट, लंबी जेलें

इन विधेयकों की टाइमिंग और पिछले सालों में हुई गिरफ्तारियों ने विपक्ष की आशंकाओं को और गहरा कर दिया है। नजर डालते हैं कुछ बड़े नामों पर:

अरविंद केजरीवाल (AAP): दिल्ली के सीएम रहते मार्च 2024 में गिरफ्तार, 5 महीने जेल, मामला विचाराधीन।

मनीष सिसोदिया (AAP): फरवरी 2023 में आबकारी घोटाले में गिरफ्तारी, 17 महीने जेल।

सत्येंद्र जैन (AAP): 2022 में गिरफ्तारी, 18 महीने जेल में रहे।

जयललिता (AIADMK): 2014 में सीएम रहते गिरफ्तार, 21 दिन जेल में, बाद में बरी।

नवाब मलिक (NCP): 2022 में गिरफ्तार, 18 महीने जेल।

पार्थ चटर्जी (TMC): 2022 में गिरफ्तारी, अभी भी जेल में, 37 महीने से ज्यादा।

वी. सेंथिल बालाजी (DMK): 15 महीने जेल में, मामला जारी।

बिल का असली असर: सत्ता या साजिश?

विपक्ष का कहना है कि यह विधेयक असल में सत्ता से बाहर के नेताओं को पहले ही “अपराधी” घोषित करने की कोशिश है, ताकि उन्हें कानूनी लड़ाई से पहले ही पद से हटाया जा सके।

सरकार की ओर से दावा है कि यह बिल भ्रष्टाचार-मुक्त राजनीति की दिशा में एक सख्त और जरूरी कदम है, जहां कोई भी पद पर रहते हुए कानून से ऊपर न हो।

राजनीति गरम, संसद में ठनाठनी तय

बिल फिलहाल संसद में विचाराधीन है, लेकिन जिस तरह से विपक्ष एकजुट होकर इसका विरोध कर रहा है, आने वाले हफ्तों में संसद में जोरदार हंगामा तय माना जा रहा है।

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