दोहा पर बारूद गिरा, अरब एकजुट हुआ: क्या नेतन्याहू ने खुद के लिए नया मोर्चा खोल दिया है?

गाजा, लेबनान, वेस्ट बैंक, सीरिया और यमन में आग फैलाने के बाद इजराइल ने जैसे ही दोहा को छुआ, पूरी अरब दुनिया उबल पड़ी।
इजराइल ने दावा किया—”हमास का ठिकाना था”, लेकिन इसके जवाब में अरब की रणनीति, राजनीति और सैन्य समीकरण ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगे—और फिर नए तरीके से सजने लगे।
कतर पर इजराइली हमले के बाद हालात तेजी से बदले हैं:
अरब देशों ने एक स्वर में विरोध किया।
ट्रंप ने सख्त संदेश भेजा।
इस्लामिक देशों का सम्मेलन हुआ।
संयुक्त अरब सेना (Arab NATO) की मांग ज़ोर पकड़ने लगी।
नेतन्याहू की “पोस्ट” या चेतावनी?
दोहा हमले के बाद नेतन्याहू ने सोशल मीडिया पर जो कुछ लिखा, उसे सिर्फ बयान नहीं, एक रणनीतिक “धमकी” माना जा रहा है।
उन्होंने कहा:
“हमास के नेता कतर में हैं। वही युद्ध को लंबा खींच रहे हैं। उनसे निपटना ज़रूरी है।”
यानी इजराइल अब कतर को सीधे हमास का पनाहगाह बताकर हमला जारी रखने का संकेत दे चुका है।
अमेरिका बनाम इजराइल?
ट्रंप प्रशासन ने तुरंत प्रतिक्रिया दी:
दूत स्टीव विटकॉफ इजराइल पहुंचे।
कतर को आश्वस्त किया गया।
आशंका जताई गई कि यह टकराव पूरे क्षेत्र को संकट में डाल सकता है।
अरब की नई चाल: सैन्य गठबंधन
दोहा में इस्लामिक देशों की आपात बैठक में इजिप्ट ने फिर प्रस्ताव रखा:
“NATO जैसा एक संगठन बनाओ, जो सभी अरब देशों की संयुक्त रक्षा करे।”
अबकी बार समर्थन मजबूत है—ईरान से लेकर तुर्किये और इराक तक।
क्या इजराइल ने खुद को घेर लिया है?
अब इजराइल दो मोर्चों पर फंसा है:
कूटनीतिक मोर्चा: अमेरिका से तनाव
रणनीतिक मोर्चा: अरब देशों का एकजुट होना
यदि यह सैन्य गठबंधन बना, तो दोहा पर गिरा एक बारूद अरब के लिए अलार्म और इजराइल के लिए आफत बन सकता है।



