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बिहार में मतदान का महासंग्राम — जनता ने रचा इतिहास, अब नतीजों का इंतजार!

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में गुरुवार को 121 सीटों पर रिकॉर्ड 65% मतदान हुआ — यह अब तक का सबसे ऊंचा वोटिंग प्रतिशत है।
लोकतंत्र के इस पर्व में लोगों का उत्साह देखने लायक था — महिलाएं, युवा और ग्रामीण इलाकों के मतदाता बड़ी संख्या में वोट डालने पहुंचे।

चुनाव आयोग ने इसे “शांतिपूर्ण और उत्सव जैसा मतदान” बताया। मुख्य निर्वाचन अधिकारी विनोद सिंह गुंजियाल ने कहा,

“इस बार जनता ने बदलाव या निरंतरता — दोनों में से किसी एक के लिए मन बना लिया है।”

सुशासन बनाम सबको नौकरी — चुनाव का दिलचस्प नैरेटिव

यह चुनाव सिर्फ सरकार बदलने का नहीं, बल्कि दो सोचों की टक्कर बन गया है।

नीतीश कुमार और एनडीए (NDA) अपने सुशासन, विकास और महिला सशक्तिकरण के एजेंडे पर भरोसा जता रहे हैं।

तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन ‘हर घर रोजगार’ और बेरोजगारी-महंगाई के मुद्दों पर जनता से समर्थन मांग रहे हैं।

तेजस्वी यादव ने कहा,

“इतना भारी मतदान बदलाव की लहर है, जनता ने फैसला कर लिया है।”

वहीं उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी बोले,

“राजग 2010 का रिकॉर्ड तोड़ देगा, बिहार फिर विकास की राह चुनेगा।”

जनसुराज और कांग्रेस का दावा — बदलाव की आहट

प्रशांत किशोर ने कहा कि बढ़ा हुआ मतदान “जनता की बदलाव की चाह” दिखाता है,
जबकि कांग्रेस के पवन खेड़ा ने कहा कि “स्पष्ट बहुमत अब तय है।”

2029 की राजनीति का ट्रेलर

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह चुनाव सिर्फ बिहार की सत्ता का फैसला नहीं करेगा,
बल्कि 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले जनता के मूड का मास्टर इंडिकेटर भी साबित हो सकता है।

छिटपुट घटनाओं के बावजूद शांतिपूर्ण मतदान

कुछ जगह हल्की झड़पों की खबरें आईं, मगर हालात सामान्य रहे।
प्रधानमंत्री मोदी ने महिलाओं की भागीदारी को “लोकतंत्र की ढाल” बताया और कहा,

“जंगलराज की वापसी रोकने में महिलाएं सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी हैं।”

वहीं, लालू प्रसाद यादव ने पलटवार किया,

“बीस साल बहुत हो गए, अब बिहार को नई दिशा चाहिए।”

जातीय समीकरणों का खेल अब भी अहम

यादव, कुशवाहा, कुर्मी, दलित और सवर्ण मतदाता एक बार फिर निर्णायक भूमिका में हैं।
कई सीटों का परिणाम इन्हीं वोट बैंक की एकजुटता पर निर्भर करेगा।

अब नजरें दूसरे चरण और मतगणना पर

दूसरा और अंतिम चरण 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को।
अब देखने वाली बात यह होगी कि जनता किसे अपना भविष्य सौंपती है —
सुशासन या रोजगार की नई उम्मीद?

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