H-1B वीजा हुआ महंगा, भारतीय टैलेंट और कंपनियों की रणनीति में बड़ा बदलाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बड़े फैसले ने भारतीय टेक प्रोफेशनल्स और आईटी कंपनियों की नींद उड़ा दी है। H-1B वीजा के नए आवेदन पर अब कंपनियों को $100,000 (लगभग ₹88 लाख) चुकाने होंगे। यह शुल्क 21 सितंबर से लागू हो चुका है।
इस फैसले से सबसे ज्यादा असर भारतीय स्किल्ड वर्कफोर्स पर पड़ सकता है, जो बड़ी संख्या में अमेरिका में काम करने जाते हैं। हालांकि, भारतीय कंपनियां अब इस नई चुनौती से निपटने के लिए प्लान बी पर काम कर रही हैं।
कंपनियों की नई रणनीति क्या है?
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, कई भारतीय आईटी कंपनियां अब L-1 वीजा (इंट्रा-कंपनी ट्रांसफर), B-1 वीजा (कॉन्फ्रेंस व बिजनेस मीटिंग्स) और ऑफशोरिंग (यूरोप या भारत में काम शिफ्ट करना) जैसे विकल्पों को गंभीरता से देख रही हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह बदलाव सिर्फ लागत बचाने के लिए नहीं, बल्कि विज़ा अनिश्चितता के जोखिम से बचने की एक रणनीतिक चाल है।
हायरिंग और टैलेंट मूवमेंट में बदलाव
ट्रंप सरकार की नई वीजा नीति के बाद कंपनियों का हायरिंग प्रोसेस भी बदल सकता है। कंपनियां अब ऐसे कर्मचारियों की पहचान कर रही हैं जो L-1 वीजा के लिए योग्य हों – यानी जो विदेशी ब्रांच में कम से कम 1 साल से काम कर रहे हों। इससे अमेरिका भेजने से पहले उनकी तैयारी की जा सके।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
राजनीश पाठक, CEO, ग्लोबल नॉर्थ, का मानना है कि “कंपनियां पहले भी L-1 और H-1B वीजा का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन अब नया शुल्क उन्हें L-1 और अन्य विकल्पों की ओर ज्यादा आकर्षित कर रहा है।”


