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छत्तीसगढ़ का एक गांव जहां उलटी दिशा में घूमते हैं घड़ी के कांटे

दुनिया की सभी घंड़ियां एक ही दिशा में चलती है…लेकिन छत्तीसगढ़ में एक गांव ऐसा है जहां पर घंड़ी में 12 बजने के बाद एक नहीं बजता. यहां की घड़ी उल्टी दिशा में चलती है। यहां के लोग लंबे समय से इन्ही घड़ियों में समय देखते आ रहे है और इनको सही मान रहे है।

आपको बता दे यह घड़ी कोई साधारण घड़ी नहीं है। इसकी चाल देखकर आप चौंक जाएंगे। दरअसल यह घड़ी एन्टीक्लॉक चलती है। इसकी सुई आम घड़ियों के विपरीत दाएं से बाएं दिशा की ओर घूमती है। टिक-टिक चलती सेकंड, मिनट और घंटा बताने वाली घड़ी के कांटे को जरा गौर से देखिए। यह उल्टी दिशा में घूमकर भी सही समय बता रही है। हमारी नजर में भले ही यह घड़ी उल्टी चल रही है, लेकिन देशभर में रहने वाले गोंड़ आदिवासियों की नजर में यह बिल्कुल सही दिशा में घूम रही है। उनका तर्क है कि प्रकृति की दिशा में चलने वाली घड़ी ही सही है। गोंड आदिवासियों की माने तो घड़ी की खोज करने वाले ने इसकी दिशा बदल दी। उनका तर्क भी सत्य की कसौटी पर शत प्रतिशत खरा उतरने वाला है।

गोंड आदिवासियों का कहना है की धरती अपनी धुरी पर दाएं से बाएं घूमती है। धरती पर जितनी भी लताएं हैं सेमी, लौकी, करेला, कद्दू के नार किसी पेड़-पौधे अथवा झाड़ी पर दाएं से बाएं लिपटकर चढ़ती है। खेतों की जोताई करने किसान हल भी दाएं से बाएं ही चलाते हैं। धान की मिजाई करने में उपयोग होने वाला दौरी, बेलन भी कुछ ऐसी ही चलती है। तेल निकालने में उपयोग होने वाली घानी में भी बैल दाएं से बाएं ही घूमता है।

और तो और शादी के सात फेरे भी प्रकृति की इसी दिशा में पूरे होते हैं। तब घड़ी की सुई को बाएं से दाएं दिशा में क्यों घुमाया जा रहा है? यह सवाल अनुत्तरित है। छत्तीसगढ़ के मूल निवासी गोंड़ आदिवासियों के प्राय: हर घर की दीवार में यह घड़ी टंगी मिलेगी।

यह घड़ी दुनिया की उन तमाम घड़ियों की चाल को चुनौती दे रहा है, जो बाएं से दाएं चल रहे हैं। आदिवासी इसे अपनी प्राचीन संस्कृति और गोंडवाना साम्राज्य के आस्था का प्रतीक मानते हैं। यूं तो छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में यह घड़ी मिल जाएगी। महासमुन्द और कोरबा जिले में इसकी बहुतायत है।

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