कहानी उस कलेक्टर की जो 13 दिन नक्सलियों के चंगुल में रहा,एक भी बाल भी नहीं हुआ बांका
अब नक्सलियों को पहचानने से किया इंकार

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है, दोस्तों हमारा प्रदेश आज भी नक्सलवाद का दंश झेल रहा है, बस्तर क्षेत्र में आज भी सुरक्षाबल और प्रशासनिक अधिकारी गाहे-बगाहे इनका शिकार होते हैं, सरकारें बदलीं मगर नक्सलवाद ना बदला। इस प्रदेश ने नक्सलवाद की कई घटनाएं देखीं हैं, मगर आज हम आपसे एक ऐसी घटना का ज़िक्र करने जा रहे हैं जिसे सुनकर आप ताज्जुब भी करेंगे और आपके ज़हन में कुछ सवाल भी उठेंगे।
आज हम आपको जिस घटना के बारे में बताने जा रहे हैं वो यूँ तो 11 साल पुरानी है मगर हाल ही में हुए घटनाक्रम ने इसकी यादें एक बार फिर ताज़ा कर दीं हैं। अब आपको हम आज से 11 साल पीछे यानी साल 2012 में लिए चलते हैं। तारीख थी 21 अप्रैल २०१२, छत्तीसगढ़ में गर्मियों की शुरुआत हो चुकी थी। चिलचिलाती धुप में बस्तर के सुकमा ज़िले में आईएएस एलेक्स पॉल मेनन की बतौर कलेक्टर तत्कालीन रमन सरकार ने पोस्टिंग कर दी थी। तत्कालीन सुकमा कलेक्टर मेनन सुकमा जिले के केरलापाल स्थित मांझी पारा में जल संरक्षण कार्यों के नक्शे का अवलोकन कर रहे थे। तभी अचानक कहीं से गोली चलने की आवाज आई। कलेक्टर के साथ-साथ कुछ अन्य अधिकारी और कर्मचारी सहम गए, सभी गोली की आवाज सुनकर ज़मीन पर डर के मारे लेट गए, तो कुछ इधर-उधर भागने लगे। तभी एलेक्स पॉल मेनन ने देखा कि उनका एक गनमैन ज़मीन पर औंधे मुंह गिरा हुआ है उसका नाम किशन कुजूर था। वो मर चूका था। किशन के अलावा कलेक्टर के एक और गनमैन अमजद खान को भी नक्सलियों ने गोलियों से भून दिया।
तभी एक कर्मचारी ने तत्कालीन सुकमा कलेक्टर को ख़तरा भांपते हुए कहा कि साहब आप यहाँ से भाग जाएं। मेनन जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर ज़मीन से उठे और अपनी गाडी की तरफ बेसुध होकर भाग रहे थे। तभी रास्ते में 3-4 बंदूकधारी नकाबपोश लोग सामने आ गए। पूछा कि कलेक्टर कौन है। जिसके बाद मेनन घबरा गए नक्सलियों को यह जानने में देर नहीं लगी कि जिनकी तलाश में वो आए थे वो उनके सामने ही खड़े थे, नक्सलियों ने मेनन के दोनों हाथ रस्सी से कसकर बांध दिए। आंख में पट्टी बांधकर जंगल की ओर ले गए। कुछ देर बाद आंख की पट्टी खोली। कलेक्टर को 12 दिन अपने साथ रखा। फिर 13वें दिन छोड़ दिया। नक्सलियों ने कलेक्टर का एक बाल भी बांका नहीं किया था, जैसे ले गए थे वैसे छोड़ दिया था।
इस घटना से सिर्फ छग ही नहीं बल्कि पूरे देश में हड़कंप मच गया और रातों-रात बस्तर और सुकमा कलेक्टर की चर्चा हर जुबां पर होने लगी। इस मामले में पुलिस और सुरक्षाबलों के सुचना तंत्र के फेलियर पर बुरी तरह लताड़ तो पड़ी ही साथ ही रमन सरकार की भी जमकर किरकिरी हुई। सवाल यह था कि ना पुलिस ना सुरक्षा बल कोई भी इस प्रशासनिक अधिकारी को नक्सलियों के चंगुल से छुड़ा नहीं पाया और कलेक्टर को कहाँ रखा गया है इसका पता नहीं लगा पाया जब तक के नक्सलियों ने खुद उन्हें नहीं छोड़ा।
इस घटना के 4 साल यानी साल 2016 में सुकमा पुलिस ने नक्सली हेमला भीमा को गिरफ्तार किया था। जिसे जगदलपुर जेल में बंद किया गया है। हेमला भीमा सुकमा जिले के पोलमपल्ली इलाके का रहने वाला है। यह नक्सली ततकलीन कलेक्टर मेनन के अपहरण मामले में संदेही था। गिरफ्तार किए नक्सली को पहचानने अब तक कुल 16 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं।
अब आपको ले आते हैं वर्तमान में। तारीख 1 फरवरी 2023 दंतेवाड़ा की एनआईए कोर्ट में तत्कालीन सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन को तलब किया गया, उन्हें उनके अपहरण से जुड़े संदेही नक्सलियों की पहचान और पूछताछ के लिए बुलाया गया, लेकिन उन्होनें अपने सामने लाए गए नक्सलियों को पहचानने से साफ़ इंकार कर दिया। उन्होनें किसी को भी नहीं पहचाना। इतने सालों में इस केस में एलेक्स पोल मेनन की दंतेवाड़ा के NIA कोर्ट में पहली गवाही थी।
बस्तर के केंद्रीय जेल में पिछले 12 साल तक कैद रही महिला निर्मलक्का उर्फ विजय लक्ष्मी को 4 साल पहले रिहा कर दिया गया था। दंतेवाड़ा फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहे मामले में पुलिस उस पर लगाए आरोप प्रमाणित नहीं कर पाई थी। ऐसे में सबूतों के अभाव में कोर्ट ने रिहा कर दिया। 2012 में सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन को जब नक्सलियों ने अगवा किया था, उनकी रिहाई के लिए जिन आठ नक्सलियों की सूची सौंपी गई थी, उसमें निर्मलक्का उर्फ विजय लक्ष्मी और उसके पति चंद्रशेखर का नाम भी शामिल था। निर्मलक्का उर्फ विजयलक्ष्मी 157 मामलों में से 156 में वह पहले ही रिहा हो चुकी थी। इनमें कई केस विध्वंसक हमलों में शामिल होने के आरोप पर आधारित थे।
फिलहाल एलेक्स पॉल मेनन चेन्नई SEZ में जॉइंट डेवलपमेंट कमिशनर के रूप में काम कर रहे हैं। नक्सलियों के चंगुल से छूटने के बाद से आईएएस एलेक्स पॉल मेनन प्रतिनियुक्ति मांग रहे थे, लेकिन उनका इंतजार भाजपा शासनकाल में खत्म नहीं हुआ। 2 साल पहले लगभग 9 साल के लंबे इंतजार के बाद मेनन को प्रतिनियुक्ति पर अपने गृह राज्य तमिलनाडु जाने सरकार ने अनुमति दे दी थी। अब एलेक्स पॉल मेनन कभी छत्तीसगढ़ लौटना नहीं चाहते, शायद वो अपने साथ हुई उस घटना को आज भी भुला नहीं पाए हैं।
मगर दोस्तों आपको क्या लगता है क्या एक प्रशासनिक अधिकारी का अपहरण करके उसे 12 दिनों तक नक्सलियों के चंगुल में रहना पड़ा और शासन-प्रशासन कुछ नहीं कर पाया यह अपने आप में एक बड़ा फेलियर नहीं है ? और जिन नक्सलियों को मेनन के सामने पेश किया गया उनके खिलाफ एनआईए के पास पुख्ता सबूत थे मगर मेनन ने उनमें से एक को भी नहीं पहचाना इसके पीछे आप क्या वजह मानते हैं।