
रायपुर, वैसे हम बचपन से ही सुनते आए हैं, कि नर ही नारायण हैं, और जब आपको लगने लगता है कि मुसीबतों में कोई आपके साथ नहीं हैं, तब किसी न किसी रूप में नारायण ही आपकी मदद के लिए आते हैं ।
ऐसा ही कुछ हुआ रायपुर की रहने वाली अमरिका धीवर के साथ, जो ससुराल में घरेलु हिंसा का शिकार होने के बाद दो साल से रायपुर अपने मायके में रह रही थी । दहेज प्रताड़ना और दूसरी महिला से संबंध के चलते पति ने उसे उसके दो मासूम बच्चों के साथ घर से निकाल दिया ।

महज 25 साल की उम्र में उसे परेशानियों ने घेर लिया है । रोजी रोटी के लिए मजदूरी का काम करती है, ऐसे में वो कानून सहायता और अपने लिए साइकिल की मांग को लेकर हमारे पास आई । जिसे हमारे द्वारा कानूनी सहायता के लिए मदद की ।
लेकिन उसके सामने वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या छह साल की बेटी और चार साल के बेटे को लेकर थी, जो अबतक स्कूल नहीं जा सके हैं । इसके लिए उसने एक साइकिल की कमी होने की बात भी कही । फोर्थ आई न्यूज ने प्रयास करते हुए, उसकी समस्या और मांग को सीएमओ यानि मुख्यमंत्री कार्यालय तक अलग-अलग माध्यमों से पहुंचाया । महिला के साथ साथ हमें भी उम्मीद थी कि कका यानि मुख्यमंत्री जन चौपाल लगाकर लोगों को फौरन सहायता देते हैं, तो शायद छत्तीसगढ़ की इस गरीब बेटी की इस छोटी सी मांग को जरूर सुनेंगे ।
लेकिन उसके साथ हमें भी निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि महिला की इस छोटी सी मांग को हमारे द्वारा सीएमओ में पदस्थ बड़े-बड़े अधिकारियों तक पहुंचाया गया, लेकिन मदद के लिये कोई आश्वासन तक नहीं मिला ।

खैर हम फिर कहेंगे कि जिसका कोई नहीं होता उसकी ओर हाथ बढ़ाने के लिए नारायण ही किसी रूप में आते है । ऐसा ही अमरिका धीवर के साथ भी हुआ । फोर्थ आई न्यूज ने सोशल मीडिया के अलग-अलग माध्यम पर उसकी कहानी शेयर की थी, जिसे पढ़कर दिल्ली में जी मीडिया में कार्यरत सीनियर ब्रॉडकास्ट मैनेजर विवेक गुप्ता ने महिला और उसके बच्चे को लेकर संवेदनशीलता दिखाई । उन्होने खुद फोन कर अमरिका धीवर की मदद करने की पेशकश की ।

उनकी मदद से आखिरकार अमरिका धीवर को साइकिल मिल गई, जिससे अब अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने के साथ ही उसे काम पर जाने के लिए भी समय की बचत होगी । उसने बताया कि न तो उसे, न ही उसके परिवार वालों को इस बात का विश्वास हो रहा है, कि कोई अंजान व्यक्ति कैसे उसकी मदद कर सकता है ।

खैर आपको हम यहां ये बताना बेहद जरूरी समझते हैं, कि कहने को ये सिर्फ चंद हजार की मदद है, लेकिन एक संघर्ष कर रही महिला के लिए ये अनमोल है । शायद यही वजह थी कि जब साइकिल की चाबी उसने हाथों में थामी तो उसकी आंखें खुशी के आंसू से भीग गईं ।