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बीजापुर के सुदूर गांवों में बदली सोच, नदी नहीं अब नल का जल चुन रहे लोग

बीजापुर । जिसे लंबे समय तक नक्सलवाद और पिछड़ेपन के लिए जाना जाता रहा, अब एक नई पहचान गढ़ रहा है — जागरूकता और बदलाव की पहचान। यहां अब विकास की रफ्तार केवल सड़कों और भवनों तक सीमित नहीं, बल्कि सामाजिक सोच और आदतों में भी बदलाव लाने लगी है।

भोपालपटनम और उसूर विकासखंड के गांव—बामनपुर, गुंजेपरती और नंबी, हाल ही में एक अनोखी और विचारोत्तेजक पहल के गवाह बने। इन गांवों में पहले से ही “हर घर नल से जल” योजना के तहत पेयजल की सुविधा थी। लेकिन, वर्षों से चली आ रही परंपराओं और जागरूकता की कमी के चलते कई ग्रामीण अब भी पीने के लिए नदी-नालों का पानी इस्तेमाल कर रहे थे—जिससे उनके स्वास्थ्य पर गंभीर खतरे मंडरा रहे थे।

जब जल जीवन मिशन की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई, तो जिला प्रशासन ने एक व्यावहारिक और संवादात्मक जनजागरूकता अभियान की शुरुआत की। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के मार्गदर्शन में गठित दलों ने गांवों की ओर रुख किया। और यह कोई औपचारिक भाषण या पर्चे बाँटने वाली कवायद नहीं थी—यह था आंखों खोलने वाला विज्ञान का प्रयोग।

गांव की चौपाल में, सरपंचों, सचिवों, मितानिनों और ग्रामीणों की मौजूदगी में नदी और नल के जल का परीक्षण किया गया। जैसे ही जांच की रिपोर्ट सामने आई और गांववालों ने देखा कि जिस पानी को वे अब तक ‘स्वाभाविक रूप से शुद्ध’ मानते आए थे, उसमें कितने खतरनाक तत्व मौजूद हैं—उनकी सोच पलट गई। वहीं दूसरी ओर, नल का पानी न केवल साफ, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से पूरी तरह सुरक्षित साबित हुआ।

ग्रामीणों ने उसी वक्त फैसला लिया—अब से सिर्फ नल का पानी ही पीना है।

इस छोटे से प्रयोग ने बड़ा असर दिखाया। गांववालों ने इसे ‘आँखें खोलने वाला अनुभव’ बताया और इस पहल को खुले दिल से अपनाया। अब ये गांव न सिर्फ जल उपलब्धता में आत्मनिर्भर हैं, बल्कि जल की गुणवत्ता को लेकर भी सतर्क और जागरूक हो चुके हैं।

यह उदाहरण साबित करता है कि जब विज्ञान, संवाद और संवेदनशीलता के साथ किसी मुद्दे को सामने रखा जाए, तो लोग बदलाव के लिए तैयार रहते हैं। बीजापुर की यह पहल सिर्फ एक स्वास्थ्य अभियान नहीं, बल्कि एक सामाजिक जागरण है—जो बता रहा है कि सबसे दूरस्थ इलाकों में भी सोच की धारा बदली जा सकती है।

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