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महानदी के साथ तीन महा-अन्याय – अमित जोगी का साप्ताहिक कॉलम

रायपुर: अमित जोगी ने अपने साप्ताहिक कॉलम में इस बार महानदी के मुद्दे को उठाया, उन्होने बताया कि कैसे महानदी के साथ अन्याय किया जा रहा है.

अमित जोगी ने अपने साप्ताहिक कॉलम में लिखा –

मध्य और दक्षिण बस्तर और सरगुज़ा को छोड़, छत्तीसगढ़ के शेष 28 में से 18 ज़िलों की जीवनदायिनी महानदी और उसकी सहायक नदियाँ हैं। प्रदेश की 70% से अधिक आबादी महानदी-बेसिन के पानी पर अपने जीवनयापन के लिए पूर्णतः निर्भर है। महानदी धमतरी ज़िले के सिहावा के परसिया गाँव की घाटी से निकलकर 858 किलोमीटर दूरी का लंबा सफर तय करके ओड़िसा के पूरी जिले में पहुँचकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ हसदेव, शिवनाथ, अरपा, जोंक और तेल है और ओड़िसा के संबलपुर में महानदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हीराकुंड बांध बना है। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो छत्तीसगढ़ के हर बच्चे को पढ़ाई जाती हैं। लेकिन महानदी के बारे में 3 ऐसे भौगोलिक तथ्य भी हैं जो उनको किसी पाट्यक्रम में पढ़ाए तो नहीं जाते हैं लेकिन जो निर्विवादित रूप से छत्तीगसढ़ के साथ पिछले 67 सालों से हो रहे घोर अन्याय को चिख-चिखकर बयान करते हैं:

1. महानदी का 53.9% कैचमेंट एरिया (जलग्रहण क्षेत्र) छत्तीसगढ़ तथा 46.1% कैचमेंट एरिया ओड़िसा में है।

2. ओड़िसा के सम्बलपुर जिले में लामडोंगरी और चांडली डोंगरी पर्वतों के बीच महानदी पर विश्व के सबसे बड़े कच्चे बांध हीराकुंड का 1953 में निर्माण किया गया था। हीराकुंड बांध की कुल जल संग्रहण क्षमता 8.136 KM3 है जो कि महानदी की कुल जल संग्रहण क्षमता 8.5 KM3 का 95.7% है। हीराकुंड बांध के जल से ओड़िसा के 75000 KM2 कृषि भूमि को सींचा जाता है। हीराकुंड बांध में महानदी का औसतन 40773 मिलीयन क्यूबिक मीटर जल प्रतिवर्ष आता है जिसमें से 86.59% (35308 मिलीयन क्यूबिक मीटर) जल छत्तीसगढ़ से आता है। इस के बावजूद छत्तीसगढ़ मात्र 4.3% महानदी के संग्रहित जल का उपयोग करता है जबकि शेष 95.7% का उपयोग ओड़िसा धड़ल्ले से कर रहा है।

3. छत्तीसगढ़ सरकार अब तक दावे करती आई है कि छत्तीसगढ़ के महानदी बेसिन में शुद्ध सिंचित क्षेत्र का रकबा बढ़ा है लेकिन यह बढ़ा नहीं है बल्कि 54% घटा है। केंद्र सरकार के जल संसाधन विभाग के अधीनस्थ सेंट्रल वाटर कमिशन (CWC) द्वारा प्रत्येक दो वर्षों के अंतराल में देश की सभी नदियों के सिंचाई के स्त्रोत, कृषि का रकबा, भूमि उपयोग जैसे महत्वपूर्ण जानकारी भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग से संगठित करने वाली जल वैज्ञानिकी आंकड़ा पुस्तक (इंटीग्रेटेड हैड्रोलोजिकल बुक) इस बात की पुष्टि करते हैं। राज्य सरकार ने ग़लत जानकारी देकर न केवल प्रदेश की जनता को गुमराह किया है बल्कि अंतर्राजीय नदी जल विवाद अधिनियम की धारा 9(अ) का उल्लंघन भी किया है। महानदी के जल उपयोग और महानदी बेसिन के कुल सिंचित क्षेत्र की ताजा स्थिति पर सरकार को तत्काल श्वेतपत्र जारी करना चाहिए।

B. महानदी के इतिहास के तीन अध्याय

छत्तीसगढ़ में महानदी के जल के उपयोग के इतिहास के 3 अध्याय है:

1. 1979 में पं. श्यामाचरण शुक्ल द्वारा धमतरी में 1.77 KM3 की क्षमता के गंगरेल बांध का निर्माण किया गया था। इस बांध का प्रमुख उद्देश्य प्रदेश के मैदानी इलाक़ों के किसानो को सिंचाई के साथ-साथ भिलाई स्टील प्लांट को पानी देना था। गंगरेल छत्तीसगढ़ का सबसे लंबा और बड़ा बांध है किन्तु फिर भी हीराकुंड से 8 गुना छोटा है।

2. 2002 में मेरे पिता जी द्वारा महानदी की सबसे बड़ी सहायक नदी हसदेव के जल को हसदेव-बांगो सिंचाई परियोजना के माध्यम से जांजगीर-चांपा जिले में 7000 कि.मी. लम्बा बड़ी और छोटी नहरों का जाल बिछाकर 6730 KM2 खेतों तक सिंचाई का पानी पहुंचाया गया था। (हसदेव-बांगो बांध का निर्माण 1962 में किया गया था किन्तु नहरों का जाल 40 वर्षों बाद 2002 में बिछा। इसके पूर्व इस बांध के पानी का उपयोग प्रमुख रूप से कोरबा में स्थापित BALCO, NTPC और CSEB जैसी फैक्ट्रियों द्वारा ही किया जाता था।) इसके साथ ही मोगरा और समोदा व्यपवर्तन परियोजनाओं के ज़रिए क्रमशः राजनांदगाँव और रायपुर-बलोदा बाज़ार ज़िलों की सिंचाई क्षमता भी लगभग दुगनी करी गई थी।

3. 2010 में डॉ. रमन सिंह ने शिवरीनारायण से साराडीह के बीच महानदी में 6 बैराजों का निर्माण करवा के उनका सम्पूर्ण जल जांजगीर-चाम्पा जिले में निजी कम्पनियों द्वारा लगाये गए बिजली उद्योगों को देने का निर्णय लिया था। साथ में उन्होंने मोगरा और समोदा व्यपवर्तन परियोजनाओं के पानी को भी राजनांदगाँव के केमिकल (रसायनिक) और रायपुर और बलोदा बाज़ा…

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