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क्वारंटीइन की दो तस्वीरें: एक तमाम सुविधाओं के बावजूद देश को बदनाम करने पर उतारु, तो दूसरी हाथों के हुनर से स्कूल संवारने की कोशिश

रायपुर, (FourthEyeNews) हिंदुस्तान में रहने वाले ज्यादातर लोग भले की किसी भी विचारधारा को मानते हों, लेकिन जब बात देश की आती है, तो हर हिंदुस्तानी जाति, धर्म और विचारधारा से ऊपर उठकर सोचता है.

वहीं संकट के वक्त में यह भी पता चल जाता है कि देश के प्रति कौन कितना वफादार है. ऐसी ही तो जगह की घटनाएं हम आपको बता रहे हैं. जिनमें फर्क आप खुद देखिये, एक तस्वीर पढ़े लिखे छात्रों की है, जिन्हें रोजा तो रखना है, लेकिन वे गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकते, दूसरी तस्वीर उन मेहनतकश हुनरमंद लोगों की है, जो शायद ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं पर देश औऱ अपनी जिम्मेदार क्या होती है, बखूबी जानते हैं.

घर जाने की जिद पर अड़े छात्र, सोशल मीडिया पर चलाया आक्रामक कैंपेन

चलिये पहले बात 54 कश्मीरी छात्रों की करते हैं, जिन्हें भारत सरकार ईरान से लेकर आई है, जहां से लाकर इन्हें जैसमेर में सेना के वेलनेस सेंटर में क्वारंटीन किया गया था. तमाम तरीके की सुविधाएं इन्हें दी गईं. आराम दिया गया, उऩ्हें लेकिन इन्होने जिद पकड़ ली कश्मीर अपने घर वापस जाने की.

kashmiri student

गर्मी नहीं हो रही थी बर्दाश्त

इनका कहना था कि रमजान के मौके पर वह रोजा रखते हैं और जैसलमेर में गर्मी की वजह से उनकी तबियत खराब हो सकती है, जब इन्हें समझाने की कोशिश की गई तो इन्होने सोशल मीडिया पर देश और क्वारंटीन सेंटर की सुविधाओं पर ही सवाल खड़े करने शुरू कर दिए, आखिरकार प्रशासन झुक गया और इन्हें एयरफोर्स के विशेष विमान से कश्मीर ले जाया गया.

क्वारंटीन अवधि पूरी करने के बाद मजदूरों ने स्कूल की पेंटिंग करना शुरू किया

अब बात उन मजदूरों की करते हैं, जो दूसरे राज्यों में काम करने के लिए आए थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद स्कूल, धर्मशाओं जैसी जगहों पर फंसे हैं. ऐसे ही कुछ लोग राजस्थान के सीकर में फंसे हैं, जो क्वारंटीन की अवधि पूरी कर चुके हैं, लेकिन उन्हें पता है कि लॉकडाउन के चलते वे घर नहीं जा पाएंगे लिहाजा वे जिस स्कूल में ठहरे हैं, वहीं खाना बनाने का काम करने लगे, इसके साथ ही उन्होने स्कूल की रंगाई पुताई का काम भी शुरू कर दिया. उन्हें सामग्री गांव के सरपंच ने प्रशासन के सहयोग से उपलब्ध कराई है.

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खाली बैठे तो बीमार पड़ जाएंगे

ये मजदूर कहते हैं कि गांव वाले हमारे लिए इतना कुछ कर रहे हैं, हम इनके लिए इतना तो इनके लिए कर सकते हैं. वे कहते हैं हम मेहनतकश हैं. खाली बैठेंगे तो बीमार पड़ जाएंगे.

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जाहिर है क्वारंटीन की इन दो तस्वीरों को देखकर आप समझ ही गए होंगे कि संकट के इस दौर में जो जैसे सहयोग दे सकता है. उसे देना चाहिए. फिर चाहे वह पढ़ा लिखा हो, या मजदूर लेकिन शायद यहां फर्क सोच और संस्कार का जरूर दिखाई देता है.

 

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