खैरागढ़ विधानसभा सीट का विश्लेषण,क्या यशोदा वर्मा बरक़रार रहेंगी ? या फिर राजपरिवार से कोई संभालेगा रियासत ?
खैरागढ़ विधानसभा सीट का विश्लेषण

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का एक बार फिर स्वागत है। दोस्तों आप सब ने हमारी स्पेशल विधानसभा सीरीज को भरपूर प्यार दिया है इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। दर्शक हमसे काफी समय से मांग कर रहे थे कि हम खैरागढ़ विधानसभा सीट पर भी एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार करें। तो आज हमने एक बार फिर आपकी मांग का सम्मान रखा है और हम हाज़िर हैं खैरागढ़ विधानसभा सीट का विश्लेषण लेकर।
खैरागढ़ हमारे छत्तीसगढ़ राज्य का एक कस्बा है। जो वर्तमान में नया जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई का हिस्सा है। खैरागढ़ विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट में से एक है। खैरागढ़ विधानसभा सीट राजनंदगांव के अंतर्गत आती है। इस संसदीय क्षेत्र से सांसद संतोष पांडेय हैं , जो भारतीय जनता पार्टी से हैं। उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस के भोलाराम साहू को 111966 से हराया था। खैरागढ़ विधानसभा एक सामान्य सीट है। ये राजनंदगांव लोकसभा सीट का हिस्सा है, जो केंद्रीय इलाके में पड़ता है।
इस विधानसभा सीट में वोटरों की कुल संख्या पिछले सेंसेस के मुताबिक 18 लाख 0440 है। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के गिरवर जंघेल ने 70 हज़ार 133 वोटों से जीत हासिल की थी। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी को बीजेपी के कोमल जंघेल को 2190 मतों के अंतर से हराया था। कोमल जंघेल को दुसरे स्थान पर रहते हुए कुल 67 हज़ार 943 वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर 4643 वोटों के साथ नोटा यानी नन ऑफ़ दी अबोव का रहा बीएसपि को 3043 वोटों के साथ चौथा स्थान मिला था। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कुल 152298 मत पड़े थे. मतदान कुल 84.4% हुआ था।
2018 चुनाव की बात की जाए तो उस समय देवव्रत सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जोगी कांग्रेस की पार्टी से चुनाव लड़ा था और बीजेपी की ओर से कोमल जंघेल को हराया था. उस समय कांग्रेस को इस विधानसभा क्षेत्र से मात्र 31 हजार वोट मिले थे. जानकारों की मानें तो उस चुनाव में लोधी वोट बैंक के बंटवारे के चलते बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था. इस बार दोनों पार्टियों ने खास वोट बैंक साधने की कोशिश की थी.
देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ विधानसभा सीट खाली हो गई। इसी साल यानी 2022 में यहाँ 12 अप्रैल को उपचुनाव हुआ। इसमें कुल 2 लाख 11 हजार 516 को वोट डालना था। लेकिन 78.39% लोग ही मतदान के लिए पहुंचे। यानी एक लाख 65 हजार 407 लोगों ने ही इस चुनाव में वोट डाला था। इनमें से कांग्रेस उम्मीदवार यशोदा वर्मा के पक्ष में 87 हजार 640 वोट पड़े। भाजपा प्रत्याशी कोमल जंघेल को 67 हजार 481 लोगों ने वोट डाला। उसके बाद सबसे अधिक दो हजार 607 वोट NOTA को पड़े हैं। यानी इस उप चुनाव में NOTA तीसरे नंबर पर रहा। चौथे स्थान पर फाॅरवर्ड डेमोक्रिटिक लेबर पार्टी (FDLP) के चूरन (विप्लव साहू) रहे। उनको दो हजार 408 मतदाताओं का समर्थन मिला। वहीं निर्दलीय उम्मीदवार नितिन कुमार भांडेकर को भी एक हजार 409 वोट मिल गए। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCCJ) के उम्मीदवार नरेंद्र सोनी को केवल एक हजार 208 वोट मिले हैं। यहां शेष पांच उम्मीदवारों को एक हजार से भी कम वोट से संतोष करना पड़ा है। और इस तरह इस चुनाव में जीत का सेहरा कांग्रेस की यशोदा वर्मा के सर पर सजा।
आपको यहाँ यह भी बता दें कि विधायक देवव्रत सिंह के निधन के बाद खैरागढ़ राजपरिवार में कई तरह के विवाद खड़े हुए। देवव्रत सिंह के रहते संगठन ने नेतृत्व की दूसरी लाइन वहां खड़ा ही नहीं किया था। विधायक के असमय निधन के बाद चुनाव हुए ताे जनता कांग्रेस ने सहानुभूति के सहारे वापसी की कोशिश की। जकांछ ने देवव्रत सिंह के बहनाई नरेंद्र सोनी को मैदान में उतारा। कोशिश थी कि इसके सहारे राजपरिवार समर्थक वोट को एकजुट किया जाए। लेकिन यह संगठन पर भारी पड़ गया। कई स्थानीय नेता प्रत्याशी के नाम पर प्रचार से पीछे हट गए। ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित पहचान और संसाधनों के अभाव में जकांछ अपनी बात को लेकर बड़े वर्ग तक नहीं पहुंच पाई।
बहरहाल, इस बार 2023 के विधानसभा चुनाव में खैरागढ़ की रियासत पर किसका कब्ज़ा होगा ? क्या आप मानते हैं कि राजपरिवार से कोई सदस्य भी चुनाव लड़ सकता है या फिर कांग्रेस यशोदा वर्मा को ही दोबारा मौका देगी ? इसके अलावा क्या बीजेपी और जेसिसीजे का कोई भविष्य आपको यहाँ नज़र आता है।