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जब यमुना का उफान दिल्ली की रफ्तार को बहा ले गया

दिल्ली, जो आमतौर पर अपने राजनीतिक गलियारों, तेज रफ्तार जिंदगी और चमचमाते बाज़ारों के लिए जानी जाती है, इन दिनों पानी-पानी है। यमुना के बढ़ते जलस्तर ने सिर्फ शहर की सड़कों को नहीं, बल्कि व्यवस्था, आस्था और उम्मीदों को भी अपनी लहरों में डुबो दिया है।

सचिवालय तक पहुँचा सैलाब: सत्ता के दरवाज़े पर पानी

राजधानी का दिल कहे जाने वाला दिल्ली सचिवालय—जहां मुख्यमंत्री, मंत्री और वरिष्ठ नौकरशाह बैठते हैं—अब खुद पानी के घेरे में है। जब सत्ता का केंद्र ही संकट की चपेट में आ जाए, तो आप बाकी शहर की हालत का अंदाज़ा खुद लगा सकते हैं।

मोनेस्ट्री मार्केट और यमुना बाजार में सन्नाटा

दिल्ली के ऐतिहासिक बाज़ार, मोनेस्ट्री मार्केट और यमुना बाजार, जहां हर दिन हजारों लोग खरीदारी और घूमने आते थे, अब जलराशि में डूबे पड़े हैं। वहां आज रौनक नहीं, सिर्फ खामोशी है।

राहत शिविर भी खुद राहत के मोहताज

मयूर विहार फेज-1 और वासुदेव घाट जैसे इलाकों में जहां लोगों को सुरक्षित रखने के लिए राहत शिविर बनाए गए थे, वही शिविर अब खुद बाढ़ की चपेट में हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि जलस्तर जल्द घटेगा और ज़िंदगी पटरी पर लौटेगी।

भगवान हनुमान का ‘पवित्र स्नान’

कश्मीरी गेट के पास श्री मरघट वाले हनुमान मंदिर तक भी बाढ़ का पानी पहुँच गया है। एक श्रद्धालु ने इसे श्रद्धा का रूप देते हुए कहा—“हर साल जब यमुना का पानी चढ़ता है, तो हनुमान जी का स्नान होता है। यह पवित्र जल है, हम इसका सम्मान करते हैं।” यह बयान संकट में आस्था की ताक़त को दर्शाता है।

श्मशान घाटों में भी संकट

निगमबोध घाट और गीता कॉलोनी श्मशान घाट जैसे स्थानों पर पानी भर जाने से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी प्रभावित हुई है। संजय शर्मा, जो गीता कॉलोनी श्मशान घाट के प्रमुख हैं, कहते हैं—“हम सड़क पर ही दाह संस्कार कर रहे हैं, क्योंकि अंदर कुछ भी बचा नहीं। अगर पानी और बढ़ा, तो ये विकल्प भी नहीं बचेगा।” लकड़ियों का नुकसान, संसाधनों की कमी और प्रशासन से कोई ठोस मदद न मिलना हालात की गंभीरता को दर्शाता है।

आसरा तो है, पर अस्थायी

अब तक 8,018 लोगों को तंबुओं में बनाए गए अस्थायी शिविरों में भेजा गया है, जबकि 2,030 लोगों को स्थायी आश्रयों में शिफ्ट किया गया है। लेकिन यह केवल आँकड़े हैं—इनके पीछे छुपे हैं वो चेहरे, जिनका घर, दुकान, मंदिर, और आत्मसम्मान सब कुछ पानी के साथ बह गया है।

बारिश ने जोड़ा ज़ख्मों पर नमक

बारिश ने अलग मुसीबत खड़ी कर दी है। लगातार हो रही बारिश ने शहर के ट्रैफिक सिस्टम को जाम कर दिया है। बाढ़ और बारिश की दोहरी मार झेल रही दिल्ली की सड़कें अब संघर्ष की प्रतीक बन गई हैं।

सरकार की निगरानी जारी, लेकिन सवाल भी कायम

सरकार का कहना है कि स्थिति पर चौबीसों घंटे नजर रखी जा रही है और घबराने की जरूरत नहीं है। लेकिन जब राहत शिविर डूब जाएं, जब श्मशान घाटों पर भी संकट हो, और जब लोग सड़क पर अंतिम संस्कार करने को मजबूर हों—तो सवाल उठना लाज़िमी है: क्या हम हर साल सिर्फ ‘निगरानी’ करते रहेंगे?

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