जगदलपुर : बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले की तीन पंचायतों में अपनी पूरी जिंदगी जी चुके घर के बड़े बुजुर्गों की मृत्यु पर खुशियां मनाई जाती हैं और उन्हें आदर सहित स्मरण किया जाता है। यहां बसने वाली एक जनजाति में युवाओं की मौत पर मातम मनाया और वहीं बुजुर्ग की मौत पर खुशी मनाने की परंपरा आज भी चली आ रही है।
जानकारी के अनुसार यहां बसने वाली गोंड जनजाति में प्राचीन समय से मौत के संबंध में कई परंपराएं चली आ रही हैं। किसी बीमारी या दुर्घटना से मौत होने पर शव का दाह संस्कार किया जाता है तो सामान्य मौत होने पर शव को दफनाया जाता है। इस संबंध में स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस साल उनके गांव में बीमारी से चार लोगों की मौत हुई थी। उनका दाह संस्कार किया गया। वहीं अंचल के ब्रेहबेड़ा के ग्रामीणों ने बताया कि यहां ज्यादातर दफनाने की ही परंपरा रही है। किन्तु कुछ अर्से से दाह संस्कार की परंपरा भी शुरू हुई है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से जागरूक इस जनजाति के लोगों का कहना है कि बीमारी से हुई मौत पर शव को दफनाने पर संक्रमण की आशंका बनी रहती है। इसीलिए ऐसी मौत पर दाह संस्कार किया जाता है।
इस संबंध में मृत्यु के संस्कार बताते हुए ग्रामीणाों ने बताया कि मृतक की अंतिम क्रिया के पश्चात वे उस स्थान पर पत्थर गाडक़र प्रसन्नतापूर्वक खुशी के गीत गाते हैं। इस संबंध में अंचल की ग्राम चेचनपारा के ग्रामीण बताते हैं कि युवा की मौत पर मातम होता है, वहीं किसी बुजुर्ग की सामान्य मौत पर उसकी बेटी खुशी के गीत गाती है।
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