रमन सरकार का वो फैसला जिसने उठाए कई सवाल,आज भी लगा है दाग ?
कैसे मिटाएंगे डॉ रमन

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों जैसा की हम सभी जानते हैं कि हमारे छत्तीसगढ़ में अगर सबसे ज़्यादा किसी ने शासन किया है तो वो है बीजेपी। बीजेपी की यहाँ वर्ष 2003 से लेकर 2018 तक 15 सालों तक सरकार रही और इन 15 सालों में डॉ रमन सिंह ही मुख्यमंत्री की कमान संभाले रहे। लेकिन दोस्तों डॉ रमन सिंह ने सरकार में रहते हुए कुछ ऐसे फैसले लिए जो यहाँ कि जनता को नागवार गुज़रे उन्ही में से एक फैसला था शराब दुकानों को लेकर।
बात साल 2017 की है। जब रमन हमारे प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनावों को बमुश्किल एक साल का समय बचा था। उस समय तत्कालीन रमन सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। फैसला था शराब दूकान के संचालन का। बीजेपी सरकार ने तय किया कि अब वो खुद ही प्रदेश की शराब दुकानों का सञ्चालन करेगी। दरअसल, उस दौरान हाई वे में शराब दुकानें हुआ करती थीं, जिसकी वजह से सड़क हादसों में बढ़ोत्तरी हुई। सुप्रीम कोर्ट ने हाइवे से शराब दुकानें हटाने का फैसला दिया। और छत्तीसगढ़ में भी यह फैसला लागू करना था मगर इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सरकार ने एक मास्टरप्लान बनाया। सरकार ने शराब दुकानों के संचालन की जिम्मेदारी राज्य सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाले निगम के हवाले करने का निर्णय लिया।
रमन कैबिनेट की बैठक में तय किया गया कि सरकार छत्तीसगढ़ आबकारी (संशोधन) अध्यादेश 2017 लाएगी। जिसके बाद देसी तथा विदेशी मदिरा दुकानों के राजस्व को सुरक्षित रखने दोनों तरह की मदिरा के फुटकर विक्रय का अधिकार सार्वजनिक उपक्रम को दिया गया। बैठक के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने बयान दिया था कि दूरदराज के इलाके में शराब दुकानों के लिए ठेकेदार नहीं मिलते। निगम का गठन होने से यह समस्या दूर हो जाएगी।
प्रदेश में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से करीब 4 सौ दुकानें प्रभावित हो रही थीं। दूसरी जगहों पर इसका संचालन करने को ठेकेदार तैयार होंगे या नहीं, यह अभी साफ नहीं था। आबकारी विभाग के पास उतना मैदानी अमला नहीं था कि दुकानों को चला पाएं, इसलिए इस काम को निगम को सौंपने का निर्णय लिया गया । हालांकि प्रदेश में बे्रवरेज कार्पोरेशन पहले से ही था। तय हुआ कि नया निगम फुटकर दुकानों के संचालन का काम देखेगा। आबकारी एक्ट की धारा 18 (क) में निगम के गठन का प्रावधान है।
इसके बाद ना जाने सरकार को क्या जल्दी थी कि जनता के बारे में बिना सोचे-समझे उसने शराब दुकानों को शहरों में ला खड़ा किया। कुछ दुकानें तो ऐसी जगह खोल दिन जहाँ स्कूल, अस्पताल या रिहायशी इलाके थे। ऐसी जगहों पर शराब दूकान संचालित होने से इन जगहों का माहौल बिगड़ने लगा। शराबियों का स्थानियों से विवाद, महिलाओं से छेड़खानी, छात्राओं से टिप्पणी आम बात हो गई। आखिरकार जब सब्र का बाँध फूटा तब फिर स्थानीय रहवासियों ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कुछ जगहों पर तो शहरवासी धरने पर बैठ गए। आखिरकार सरकार को एक नया आदेश निकालना पड़ा कि शराब दुकानें किसी भी स्कूल, मंदिर, अस्पताल परिसर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर संचालित की जाएंगी। इसके बाद सरकार ने थोड़ी राहत की सांस ज़रूर ली मगर जनता की नाराज़गी बनी हुई थी।
जनता ने यह भी माना कि सरकार को पहली बात शराबबंदी की ओर कदम बढ़ाना था न की खुद ठेके खोलने का फैसला लेना था। फिर शराब दुकानें अगर शहर में ही संचालित करनी थी तो इसके लिए ऐसी जगह निर्धारित करनी चाहिए थी जहाँ लोगों का आना-जाना कम होता हो, या वो क्षेत्र जो रिहायशी इलाकों से दूर हों। बहरहाल इसके अगले साल चुनाव आए और जनता ने अपनी नाराज़गी सरकार के प्रति ज़ाहिर कर दी। चूंकि इन शराब दुकानों से सबसे ज़्यादा महिलाएं और छात्र परेशान थे लिहाज़ा रमन सरकार को इसका खामियाज़ा विधानसभा चुनाव में बहुत हद तक भुगतना पड़ा।
दोस्तों रमन सरकार ने जो फैसला उस समय लिया था उसकी छाप आपको आज भी आपके शहर या ज़िले में देखने को मिल जाएगी। पूर्ववर्ती रमन सरकार के इस निर्णय को आप कितना सही मानते हैं ? क्या वाकई इसमें कोई त्रुटि थी या फिर उस समय सरकार के पास कोई विकल्प नहीं बचा था जिस वजह से उसे यह फैसला लेना पड़ा ? क्या शराब ठेकों का सञ्चालन खुद सरकार द्वारा करना उचित है ? और क्या इसी वजह से 2018 के विधानसभा चुनाव में डॉ रमन सिंह को इतना बड़ा नुकसान उठाना पड़ा ?