जब भूपेश बघेल के शपथ ग्रहण में उनसे ज़्यादा लगे थे कवासी लखमा के नारे,कोंटा के कवासी के क्या सीएम से भी भारी हैं समर्थक ?

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का एक बार फिर से स्वागत है। दोस्तों आज हम आपको एक ऐसा पोलिटिकल किस्सा बताने जा रहे हैं जिसके बारे में ऑफ़ दी रिकॉर्ड बहुत कम जानकारी है क्योंकि यह घटना जब हुई तब मेनस्ट्रीम मीडिया में यह कभी नहीं दिखाई गई या दिखने नहीं दी गई, क्योंकि वाक्या ही कुछ ऐसा था। दरअसल, साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का 15 सालों का वनवास खत्म हुआ था, सीएम फेस को लेकर मची जद्दोजहद के बीच भूपेश बघेल का नाम फाइनल किया गया, कांग्रेस आलाकमान ने सीलबंद लिफ़ाफ़े में भूपेश बघेल की बनने जा रही कैबिनेट में शामिल मंत्रिमंडल के नामों की भी लिस्ट रायपुर भेजी।
इस लिस्ट में कोंटा विधायक कवासी लखमा का भी नाम शामिल था, उनके ज़िम्मे प्रदेश के बड़े महकमों में से एक माने जाने वाले आबकारी विभाग का ज़िम्मा आया। कवासी लखमा ने लगातार पांचवीं बार विधानसभा का चुनाव जीता था, लिहाज़ा उनको मंत्रिमंडल में जगह मिलनी पहले से ही तय मानी जा रही थी। फिर आया 17 दिसंबर का दिन जिस दिन तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहे भूपेश बघेल अब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे थे।
उस दिन जब वो सभागार में जब वह वहां पहुंचे तब उनसे ज़्यादा लखमा दादी-लखमा दादी के नारे गूँज रहे थे। आपको बता दें कि कवासी लखमा के समर्थ उन्हें स्नेह और आदर से लखमा दीदी कहकर ही सम्बोधित करते हैं। कवासी लखमा पहले से ही ऑडिटोरियम में मौजूद थे। खुद से ज़्यादा लखमा के नारे लगते देख एक पल तो सीएम पद की शपथ लेने जा रहे भूपेश बघेल भी थोड़ा ठिठक गए। मगर फिर भी उन्होने अपने कदम आगे बढ़ाए और मंच तक गए।
कवासी लखमा की लोकप्रियता का आलम उस दौरान कुछ ऐसा दिखा कि ऐसा लगने लगा कि उन्होनें मुख्यमंत्री पद को भी ओवरलैप कर लिया हो क्योंकि वहां कांग्रेस के जितने भी विधायक थे जो मंत्री पद की शपथ लेने जा रहे थे उनमें से किसी के भी समर्थकों ने उनके सम्मान में इतना उत्साह और ऐसा स्वागत नहीं किया था। इसके बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ हुई फिर मंत्रिमंडल ने भी शपथ ली।
दोस्तों, कवासी लखमा बस्तर के खांटी आदिवासियों का प्रतीक हैं। कांग्रेस ने जब उन्हें पहली बार 1998 के विधानसभा चुनाव में टिकट दिया था, तब अनेक लोगों को हैरत हुई थी, क्योंकि इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि वह लिखना पढ़ना नहीं जानते! उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद सामान्य थी। अगर उनपर आपने हमारी बनाई गई स्पेशल स्टोरी नहीं देखि है तो आप ऊपर आई बटन क्लिक करके उसे देख सकते हैं।
दोस्तों, इस घटना को आप किस नज़रिये से देखते हैं क्या वाकई कवासी लखमा की पॉपलुलरिटी कांग्रेस के अन्य नेताओं से ज़्यादा है ? और अगले विधानसभा चुनाव में क्या एक बार फिर कवासी लखमा जीतते हैं और कांग्रेस की सरकार यदि बनती है तो क्या इस बार उन्हें कोई और अहम् ज़िम्मेदारी मिल सकती है ? अपनी राय हम तक कमेंट बॉक्स के माध्यम से ज़रूर पहुंचाएं। ऐसे ही और पोलिटिकल किस्सों के लिए आप बने रहिए फोर्थ आई न्यूज़ के साथ, नमस्कार।