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जिनके साथ मिलकर गिराई थी सरकार,अब हैं एक दूसरे के ही घुर प्रतिद्वंदी

क्या दल बदलने के फैसले पर पछता रहे ये नेता

नमस्कार दोस्तों, फोर्थ आई न्यूज़ में आप सभी का स्वागत है, दोस्तों आज हम आपको हमारे पडोसी राज्य मध्यप्रदेश से जुडी एक ख़ास खबर बताने जा रहे हैं, वर्तमान में यहाँ बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री, मगर जब 2018 में इस प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए थे तब जनता ने कांग्रेस को चुना था मगर मार्च 2020 में कांग्रेस के स्टार नेताओं में शुमार सिंधिया राजवंश के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी में अपनी अनदेखी के चलते बीजेपी में शामिल हो गए और अपने साथ कुल 22 कोंग्रेसी विधायकों का भी उन्होनें बीजेपी प्रवेश करवाया।

इसके बाद प्रदेश में उपचुनाव हुए कुछ कांग्रेस से बीजेपी में आए विधायक भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़े, और जीते भी इन 22 में से 8 विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह मिली, तो वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया आज केंद्र में नागरिक उड्डयन मंत्रायलय संभाल रहे हैं। इन कोंग्रेसियों को बीजेपी में आए 3 बरस होने को हैं मगर लगता है कि अभी तक इनका भाजपा के अन्य राजनेताओं के साथ तालमेल नहीं बैठ पाया है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थित विधायकों को लेकर अक्सर यह कहा जाता है कि उन्हें शिवराज सरकार में एडजस्ट करना पार्टी के पुराने नेताओं को उतना रास नहीं आया जो बीजेपी से काफी सालों से जुड़े हुए हैं, मगर सियासत में सब जायज़ है, अपने फायदे के लिए कभी-कभी लम्बे आरसे से किसी पार्टी से जुड़े नेता दल परिवर्तन में गुरेज़ नहीं करते।

अब मध्यप्रदेश में हालत यह हैं कि सरकार में ही अलग-अलग गुट नज़र आते हैं। वो कैसे ? आगे हम आपको बताते हैं। कभी रायसेन जिले के सांची से स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी और डॉ. शेजवार ने एक-दूसरे के खिलाफ छह चुनाव लड़े हैं। मगर अब दोनों एक ही पार्टी में हैं। जहाँ प्रभुराम चौधरी को मंत्री बना दिया गया तो वहीं अब पार्टी में डॉ शेजवार की उतनी पूछ परख नहीं दिखती। वो अपनी इस पीड़ा को खुलकर बताने से भी गुरेज़ नहीं करते। सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद प्रभुराम के प्रचार के लिए शेजवार को आना पड़ा। एक-दूसरे के धुर विरोधी जब साथ आए, तो प्रभुराम रिकॉर्ड 63,809 वोटों से उपचुनाव जीते। दोनों डॉक्टरों के दल तो मिल गए, लेकिन दिल नहीं मिल पाए। उपचुनाव के बाद पार्टी ने शेजवार को नोटिस थमा दिया। शेजवार भी प्रभुराम पर हमले बोलते रहते हैं।

वहीं सागर की बात करें तो यहाँ मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के खिलाफ भाजपा के ही एक पूर्व नेता पीछे पड़े हैं। उन्होंने राजपूत के खिलाफ शिकायतों का अंबार लगा दिया है। खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह से भाजपा के पुराने कार्यकर्ता नाराज हैं। अपनी ही सरकार के खिलाफ कई बार पार्टी के कार्यकर्ता अनशन पर बैठ चुके हैं।

मध्यप्रदेश के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत सागर जिले की सुरखी से विधायक हैं। वो सिंधिया समर्थक माने जाते हैं। नवंबर 2021 के उपचुनाव के बाद से नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह के रिश्तेदार और बीजेपी किसान मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे राजकुमार सिंह ठाकुर ‘धनौरा’ के साथ उनकी खटास जगजाहिर है। दरअसल, बीते साल राजकुमार सिंह धनौरा को बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया था। जिसके बाद से ही उन्होनें गोविन्द सिंह राजपूत के खिलाफ राजनितिक लड़ाई को पारिवारिक लड़ाई में बदल दिया। गोविन्द सिंह राजपूत को ससुराल से दान में मिली 50 एकड़ जमीन के मामले का खुलासा उन्होंने ही किया। हाल में मंत्री के स्कूल की जमीन का मामला भी उजागर किया। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी लगाई गई है। धनौरा अब गांव-गांव पदयात्रा निकालकर बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं को जोड़कर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

दिसंबर 2022 के आखिरी हफ्ते में डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने एक कार्यक्रम में कहा कि ‘घोड़ा भी मरेगा और राजा भी मरेगा’। इस बयान को विधानसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। वर्तमान में नई और पुरानी भाजपा कार्यकर्ताओं में मनमुटाव है। यहां डॉ. प्रभुराम चौधरी ने सागर रोड पर श्रीराम परिसर नाम से कार्यालय बना रखा है। दूसरा है जिला भाजपा कार्यालय बस स्टैंड के पास स्थित है। श्रीराम परिसर में कोई कार्यक्रम होता है, तो वहां पुराने भाजपाई नहीं जाते। असल में उनका मानना होता है कि श्रीराम परिसर सिर्फ सिंधिया समर्थक भाजपाइयों के लिए है।

प्रदेश सरकार में जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट का राजनीतिक गढ़ शुरुआत से ही सांवेर रहा है। कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद सिलावट के कद व सम्मान में अंतर नहीं आया। इंदौर में 2 नंबर विधानसभा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय व रमेश मेंदोला के क्षेत्र में भी सिंधिया का ऐतिहासिक स्वागत हुआ था। असर 2020 के उप चुनाव में देखा गया। सिलावट यहां से चुनाव लड़े, तो रमेश मेंदोला रणनीतिकार थे। नतीजा, सिलावट 54 हजार वोटों से जीते। इसके पहले सिलावट जब कांग्रेस में थे, तो विजयवर्गीय व मेंदाला से उनके व्यक्तिगत संबंध अच्छे ही रहे हैं। जहां तक सत्ता व संगठन का सवाल है, भाजपा में आने के बाद दोनों में पार्टी नेताओं से अच्छे ताल्लुकात रहे।

चंबल की मुरैना विधानसभा में कांग्रेस को 25 साल बाद जीत मिली। साल 2018 में रघुराज कंसाना कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल होने के बाद रघुराज भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के राकेश मावई से हार गए। रघुराज ने बीजेपी नेताओं पर भितरघात के आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था- मेरे लिए भाजपा कार्यकर्ताओं ने जी-तोड़ मेहनत की है लेकिन सेकंड लाइन के भाजपा नेताओं ने उपचुनाव में मेरा खुलकर विरोध किया है। मैंने 15 से 20 भाजपा नेताओं की सूची बनाकर प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा को सौंपी है।

इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए रघुराज फिर से दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के अंदर उनका विरोध हो रहा है। बीजेपी के कद्दावर नेता और पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह भी मुरैना से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

तो दोस्तों आपको क्या लगता है क्या इन अब मध्यप्रदेश बीजेपी में ही दो दल हो चुके हैं ? क्या कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए विधायक और उनके समर्थक पार्टी से तालमेल बिठा पाएंगे या फिर यह इस साल के विधानसभा चुनावों में सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं ? क्या नेताओं के दल बदलने को आप सही मानते हैं ?

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