नईदिल्ली : मृत्यु जीने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट का शुक्रवार को इच्छा मृत्यु के अधिकार को कुछ शर्तों के मंजूरी का फैसला दार्शनिकता से भरा हुआ है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने जीवन की तुलना दिव्य ज्योति से करते हुए इसके सम्मान की बात की और मृत्यु को जीने की प्रक्रिया का हिस्सा बताया। जजों ने अपना फैसला सुनाते हुए स्वामी विवेकानंद के कथनों के साथ ही मशहूर कवियों की कविताओं का भी जिक्र किया।
सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कहा, स्वाभिमान के साथ जीना हमारे जीवन जीने के अधिकार का अभिन्न अंग है। जीवन और मृत्यु को अलग नहीं किया जा सकता। हर क्षण हमारे शरीर में बदलाव होता है। बदलाव एक नियम है। जीवन को मौत से अलग नहीं किया जा सकता। मृत्यु जीने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है।
सीजेआई ने इस मानवीय मामले में पांचों जजों की बेंच के बहुमत वाले फैसले की शुरुआत मशहूर कवियों और दार्शनिकों की उक्तियों से की। स्वामी विवेकानंद की उक्ति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन एक ज्योति है। इस दिव्य ज्योति का सम्मान होना चाहिए।
दबाव में तो नहीं आ जाएंगे मरीज?
कोर्ट के फैसले से के बाद यह सवाल भी उठ रहा है कि असाध्य बीमारियों से जूझ रहे लोगों पर कहीं इच्छा-मृत्यु की वसीयत लिखने का पारिवारिक दवाब तो नहीं आ जाएगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का दुरुपयोग रोकने के लिए गाइडलांस भी जारी की हैं