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शहबाज शरीफ ने मुस्लिम देशों के सम्मेलन में इजरायल के खिलाफ संयुक्त कार्रवाई की वकालत की, पर एक्सपर्ट्स बोले- “परमाणु बम सिर्फ बयानबाजी, सच में ऐसा कोई विकल्प नहीं”

कतर में 9 सितंबर के इजरायली हमले के बाद मुस्लिम देशों के सम्मेलन का मंच पाकिस्तान के लिए अपनी भूमिका दिखाने का अवसर बन गया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इजरायल को युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराया और उसकी संयुक्त राष्ट्र सदस्यता निलंबित करने की मांग की। साथ ही अरब-इस्लामिक टास्क फोर्स बनाने का प्रस्ताव भी रखा जिससे इजरायल के खिलाफ सामूहिक रणनीति बन सके.

वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान इस्लामिक देशों में अपनी ताकत दिखाने के लिए बार-बार परमाणु बम की धमकी देता है। वाकई पाकिस्तान अकेला मुस्लिम बहुल परमाणु संपन्न राष्ट्र है, लेकिन सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ स्पष्ट कहते हैं कि परमाणु हथियार सिर्फ आखिरी सुरक्षा गारंटी होते हैं – इसका उपयोग दुनिया के लिए विनाशकारी और पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित होगा.

हाल के विवाद में पाकिस्तानी पत्रकारों और अधिकारियों ने इजरायल एवं अमेरिका को भी परमाणु धमकी दे डाली, लेकिन पाकिस्तान के पूर्व एयरफोर्स अधिकारी विजयेन्द्र के ठाकुर के मुताबिक – अमेरिकी-इजरायली जंगी क्षमता इतनी मजबूत है कि किसी परमाणु हमले का जवाब इतना विनाशकारी होगा कि पाकिस्तान की सलामती पर सवाल उठ जाएगा। मिसाइल-रोधी तकनीकें भी इजरायल के पास हैं, ऐसे में परमाणु रणनीति महज ‘‘बयानबाजी’’ से ज्यादा कुछ नहीं.

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान खुले तौर पर इस्लामिक देशों को परमाणु शील्ड देने का ऐलान करेगा, तो उसपर तत्काल अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध तय हैं, जिससे अर्थव्यवस्था और अस्तित्व दोनों खतरे में आ जाएंगे। पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का मकसद असल में भारत के खिलाफ ‘डिटरेंस’ तक सीमित रहा है, न कि इजरायल या दूसरे देशों के लिए.

हकीकत में मुस्लिम देशों के सम्मेलन ने तो एकजुटता दिखाया, लेकिन इसके आगे कोई ठोस सामूहिक कार्रवाई की हिम्मत नहीं की। इसलिए – पाकिस्तान की परमाणु राजनीति इजरायल पर दबाव बनाने और मुस्लिम देशों में अपनी चमक बरकरार रखने का जरिया भर है.

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