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तनाव की तंग रस्सी पर पाकिस्तान — अब भारत की राह पर?

अफगान सीमा पर बढ़ते तनाव और आतंकी हमलों के साए में पाकिस्तान की रणनीति अचानक बदलती दिख रही है। कभी अपने पड़ोसी देशों पर उंगली उठाने वाला पाकिस्तान अब खुद भारत जैसी नीति अपनाने लगा है — आतंकवाद के खिलाफ सख़्त रुख और कूटनीतिक ताना-बाना बुनने में व्यस्त।

प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सऊदी अरब में सुरक्षा और निवेश की तलाश में हैं, सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर जॉर्डन में रणनीतिक सहयोग की बात कर रहे हैं, वहीं उपसेना प्रमुख मिर्जा शमशाद बेग बांग्लादेश में रिश्तों की नई डोर जोड़ने की कोशिश में हैं।
इस बीच, इस्तांबुल में अफगान तालिबान से शांति वार्ता भी जारी है — एक देश, चार मोर्चे, और लक्ष्य सिर्फ एक — “युद्ध से बचना, शांति को साधना।”

लेकिन हालात इतने सरल नहीं हैं
अक्तूबर 2025 के पाकिस्तानी हवाई हमलों ने तालिबान को भड़का दिया, जिसके बाद सीमा चौकियों पर हुई जवाबी गोलाबारी में दर्जनों सैनिक मारे गए। अब हालात इस कदर तनावपूर्ण हैं कि “हर गोला, एक चेतावनी” बन चुका है।

इस्तांबुल वार्ता में पाकिस्तान ने तालिबान के सामने सख़्त शर्तें रखीं —

“सीमा पार आतंकवाद बंद करो, ठोस और सत्यापन योग्य कदम उठाओ।”

तालिबान का जवाब उतना ही तीखा था —

“पाकिस्तान की मांगें ज़मीनी हकीकत से परे हैं।”

विडंबना यह है कि पाकिस्तान आज वही राग अलाप रहा है जो भारत उससे बरसों से सुनाता आया है — “अपनी ज़मीन से आतंकवाद बंद करो।”
आज पाकिस्तान पर वही तलवार लटक रही है जो उसने दूसरों के सिर पर थामी थी।

कूटनीतिक स्तर पर इस समय पाकिस्तान “मल्टी-फ्रंट बैलेंसिंग” की नीति पर चल रहा है —

पश्चिमी सीमा पर अफगानिस्तान से शांति,

खाड़ी देशों से आर्थिक राहत,

और दक्षिण एशिया में अपनी पकड़ बनाए रखना।

शहबाज, मुनीर और शमशाद की यात्राएं उसी “बहु-स्तरीय कूटनीति” का हिस्सा हैं, जो पाकिस्तान को किसी बड़े युद्ध से बचाने का अंतिम प्रयास साबित हो सकती हैं।

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