पटरी पर टूटी वेल्डिंग ने छीनी 150 से ज्यादा जानें: पुखरायां में हुई वो भयावह रात जब डिब्बे हवा में उछल पड़े

20 नवंबर की ठंडी रात थी। इंदौर से पटना की ओर दौड़ती ट्रेन में लगभग सभी यात्री गहरी नींद में थे। खिड़कियों से आती तेज़ हवाओं के बीच लोग कंबल और चादर ओढ़कर सो रहे थे। तभी अचानक एक ज़ोरदार झटका लगा—ऐसा कि कई यात्री हवा में उछलकर कोच की छत से टकरा गए। देखते ही देखते चीख-पुकार मच गई और अंधेरे में कोचों के टूटे-अटके हिस्सों की आवाज़ गूंजने लगी।
यह दिल दहला देने वाली घटना आज ही के दिन, 20 नवंबर 2016, कानपुर देहात के पुखरायां में घटी थी। इस भीषण हादसे में 150 से अधिक लोगों की मौत हुई और सैकड़ों लोग घायल हुए।
इंदौर-पटना एक्सप्रेस (19321) झांसी–कानपुर सेक्शन पर करीब 3 बजे, 106 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रही थी। जांच में पता चला कि एस-1 स्लीपर कोच की जंक लगी वेल्डिंग टूटकर पटरी पर गिर गई, जिससे पटरी पर रुकावट बनी और कोच एस-1 व एस-2 पटरी से बाहर जा गिरे। ये डिब्बे फुटबॉल की तरह उछलकर बी-3 कोच से टकराए। कुल 14 कोच ट्रैक से उतर गए।
सबसे ज्यादा मौतें एस-1 और एस-2 में हुईं, जहां ज्यादातर यात्री सो रहे थे। हादसे के तुरंत बाद स्थानीय ग्रामीणों ने बचाव शुरू किया, फिर NDRF, पुलिस और डॉक्टरों की टीमों ने मलबा काटकर लोगों को निकाला। ट्रेन में अधिकतर यात्री मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के थे, जो दिवाली और छठ के बाद अपने काम पर लौट रहे थे।
रेलवे सुरक्षा आयुक्त (CRS) की रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह हादसा पूरी तरह मैकेनिकल फेलियर था—ट्रैक फ्रैक्चर नहीं, बल्कि टूटे हुए वेल्डिंग हिस्से की वजह से।
रेलवे के सुरक्षा कदम
इस दुर्घटना के बाद रेलवे ने कई बड़े सुधार तेज़ किए—
कवच एंटी-कोलिजन सिस्टम का विस्तार, जो ट्रेनों को खतरे की स्थिति में ऑटोमैटिक ब्रेक लगाकर रोक देता है।
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग और ऑटोमैटिक सिग्नलिंग का तेज़ी से विस्तार।
मानव-त्रुटि कम करने के लिए लोको पायलटों हेतु एसी केबिन, बेहतर सीट और रेस्ट सुविधाएँ।
अल्ट्रासोनिक डिटेक्शन, ड्रोन और AI आधारित पटरी मॉनिटरिंग।
पुराने ICF कोचों को सुरक्षित LHB कोचों से बदलना।
यह हादसा भारत की रेल सुरक्षा व्यवस्था के लिए ऐसा सबक था जिसने आने वाले वर्षों में बड़े बदलावों की नींव रखी।




