फोर्टिफाइड चावल पर राज्य स्तरीय कार्यशाला, पोषण सुरक्षा और एनीमिया मुक्त भारत की दिशा में अहम कदम

रायपुर। राज्य सरकार कुपोषण के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने और फोर्टिफाइड चावल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए लगातार काम कर रही है। इसी उद्देश्य से मेफेयर लेक रिज़ॉर्ट, रायपुर में संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम और समाज कल्याण फाउंडेशन के सहयोग से फोर्टिफाइड चावल पर राज्य स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। यह कार्यक्रम “पोषण प्रथम जागरूकता अभियान” के अंतर्गत किया गया, जिसे छत्तीसगढ़ में विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा संचालित किया जा रहा है।
कार्यशाला का शुभारंभ खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग की सचिव रीना बाबासाहेब कंगाले द्वारा किया गया। विभाग की निदेशक डॉ. फरिहा आलम ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की तकनीकी सहायता से नवंबर 2020 से फोर्टिफाइड चावल पर कार्य शुरू किया गया था और अब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। आमजन अब इसके महत्व को समझने लगे हैं। यह कार्यशाला फील्ड स्तर पर होने वाली चुनौतियों और भ्रमों को दूर करने में मददगार साबित होगी।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डॉ. शुभा बनर्जी ने फोर्टिफिकेशन के क्या, क्यों, कब और कैसे पर विस्तृत प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में एनीमिया की उच्च दर पोषण की कमी दर्शाती है और फोर्टिफाइड चावल उसके समाधान का प्रमुख माध्यम बन रहा है।
विश्व खाद्य कार्यक्रम के वरिष्ठ प्रोग्राम एसोसिएट अरुणांशु गुहाठकुरता ने राज्य में फोर्टिफिकेशन परियोजना की प्रगति, तकनीकी समर्थन और जागरूकता अभियानों की जानकारी साझा की।
स्वास्थ्य विभाग के उप संचालक एवं बाल स्वास्थ्य नोडल अधिकारी डॉ. वी. आर. भगत ने बताया कि IFA सप्लीमेंटेशन के साथ फोर्टिफाइड चावल की पहल एनीमिया में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने सभी प्रतिभागियों से अपील की कि वे सीखी गई जानकारियों को समुदाय में पहुंचाएँ और जागरूकता बढ़ाएँ।
कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की प्रमुख डॉ. सारिका यूनुस ने अन्य राज्यों के सफल केस स्टडी भी साझा किए। कार्यशाला में विशेषज्ञों की पैनल चर्चा आयोजित हुई, जिसमें फोर्टिफाइड चावल से जुड़े मिथकों और भ्रांतियों पर विस्तार से बात हुई।



