
रायपुर। भाठागांव की गलियों में सोमवार की सुबह एक विशेष पवित्रता और आस्था का वातावरण था। वट सावित्री व्रत के अवसर पर महिलाएं पारंपरिक परिधान और सोलह श्रृंगार में सजधजकर वटवृक्ष की छांव में एकत्र हुईं। इन्हीं श्रद्धालुओं में नेहा ठाकुर और महिमा ठाकुर भी शामिल थीं, जिन्होंने अपने पति की दीर्घायु और सौभाग्य के लिए व्रत रखा।

सुबह से ही दोनों महिलाएं चूड़ियों की खनक, सिंदूर की लालिमा और बिंदी की चमक के साथ परंपरा की जीवंत मिसाल बनी हुई थीं। वे स्थानीय मंदिरों और वटवृक्ष के पास पहुंचीं, जहां उन्होंने विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की। वटवृक्ष की जड़ों में जल अर्पित कर कच्चा सूत लपेटते हुए उन्होंने परिक्रमा की और प्रार्थना की कि उनके पति जीवन के हर पड़ाव पर स्वस्थ और सुरक्षित रहें।

यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय नारी के प्रेम, त्याग और आस्था की गाथा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और भक्ति से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। उसी कथा की स्मृति में आज भी वटवृक्ष की पूजा की जाती है, जिसे शिव का स्वरूप और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
भाठागांव में यह पर्व न केवल आस्था की अभिव्यक्ति बना, बल्कि एक बार फिर यह दिखा गया कि भारतीय परंपराएं आज भी जनमानस में जीवित हैं — पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ।