
- छत्तीसगढ़ में गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा गांव में मातम की शहनाइयां तो हर महीने बजती है, लेकिन शादी की शहनाइयां कभी नहीं गुंजती. दरअसल, किडनी की बीमारी से प्रभावित इस गांव में कोई भी अपनी बेटी नहीं भेजना चाहता है और ना ही इस गांव की बेटी से कोई शादी करना चाहता है. बता दें कि शादी की शहनाई का बाजा इस गांव में पिछले 5 साल से सुनाई नहीं दिया है. लड़के वाले लड़की देखने आते हैं और लड़की वाले लड़का देखने आते हैं, लेकिन रिश्ता पक्का होने से पहले ही टूट जाता है.
- इस तरह इस गांव में न तो किसी लड़के की शादी हो रही है और ना ही किसी लड़की की शादी हो पा रही है. मौत के डर से इस गांव के लड़कों को न तो कोई अपनी बेटी देना चाहता है और ना ही यहां की बेटियों को कोई अपनी बहू बनाकर ले जाना चाहता है.
- गरियाबंद जिले के अंतिम छोर पर ओडिशा सीमा से लगे सुपेबेड़ा गांव में दशगात्र (मृत्यु के 10वें दिन होने वाला एक अनुष्ठान) के दिन बैंड बाजा बजाने का रिवाज है. यहां मातम का बैंड बाजा तो हर महीने बजता है, लेकिन शादी की शहनाइयां कभी नहीं बजती.
- दरअसल, सुपेबेड़ा गांव अभी भी किडनी की बीमारी से जूझ रहा है. पिछले तीन साल में किडनी की बीमारी से यहां अब तक 69 मौते हो चुकी हैं. मौत का सिलसिला 3 साल पहले 16 साल की डिलेश्वरी की मौत से शुरू हुआ था, जो बीते मंगलवार को भी देखने को मिला. बता दें कि इस साल की शुरुआत में किडनी की बीमारी से आहिल्या आडिल नामक एक महिला की मौत हो गई. लिहाजा, किडनी की बीमारी से लगातार हो रही मौत के चलते यहां के लड़के और लडकियों की शादी नहीं हो पा रही है.