बालाघाट लोकसभा सीट : 45 साल कांग्रेस का दबदबा

बालाघाट
वैनगंगा नदी के किनारे दो छोरों में बालाघाट-सिवनी लोकसभा क्षेत्र फैला हुआ है। करीब 25 लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र में लगभग 17 लाख 56 हजार 715 मतदाता हैं। यह सीट दो जिलों की ही नहीं, बल्कि दो राज्यों महाराष्ट्र- छत्तीसगढ़ की सीमा से भी जुड़ी है। इस सीट पर 1951 से 1996 तक कांग्रेस का दबदबा रहा है।1998 में भाजपा ने यहां कांग्रेस को हराकर चुनाव जीता तो कांग्रेस फिर यहां वापसी नहीं कर पाई है।
1998 में भाजपा से गौरीशंकर बिसेन ने कांग्रेस के विश्वेश्वर भगत को हराकर इस सीट पर खाता खोलकर जीत दर्ज कराई थी। तब से यह भाजपा का अभेद गढ़ बन गई है। यहां कोई एक दल या नेता खास नहीं रहे हैं। इस सीट पर नंदकिशोर शर्मा,विश्वेश्वर भगत व गौरीशंकर बिसेन पर 2-2 बार लोकसभा चुनाव जीतने का रिकार्ड है। इस बार यहां भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए सीट बचाने और सीट पर वापसी की बड़ी चुनौती है।
टिकट वितरण में जातिगत आधार, पर ये नहीं बनता वोट का आधार : भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दल जातिगत आधार पर यहां टिकट का वितरण करते हैं लेकिन एक ही समाज के उम्मीदवार देने से पवार समाज से ही सांसद चुने जा रहे हैं। यहां लोधी और मरार समाज का भी जातिगत वोट बैंक पार्टी तलाशती नजर आती हैं। भाजपा इस सीट पर प्रहलाद पटेल को छोड़ दें तो लगातार पवार उम्मीदवार ही मैदान में उतारती है। जबकि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में मरार समाज से हिना कांवरे को टिकट देकर नया प्रयोग किया था, लेकिन यह असफल रहा। यहां महज टिकट वितरण में जातिगत आधार दिखाई देता है वोटों पर इसका असर कम होता है।
राजनीतिक परिदृश्य : बालाघाट सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ, तब इस सीट पर सीडी गौतम ने कांग्रेस को जीत दिलाई थी। अगला चुनाव भी यहां कांग्रेस ने ही जीता था। 1962 यह सीट कांग्रेस के हाथ से चली गई थी। 1967 में कांग्रेस ने यहां फिर वापसी की। इसके बाद भी कांग्रेस ने लगातार दो बार चुनाव जीता। 1996 तक इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है।
मतदाता का मिजाज : पूर्व चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष डालचंद चौरड़िया का कहना है कि बालाघाट-सिवनी संसदीय क्षेत्र में प्रचुर खनिज संपदा व वन संपदा है। इसके बावजूद यहां अपेक्षाकृत रोजगार के अवसर पैदा नहीं किए जा रहे हैं। गौली मोहल्ला निवासी इंन्द्रजीत भोज का कहना है कि बालाघाट जिले की जनता हमेशा उम्मीद के साथ बदलाव लाती रही है, लेकिन जिम्मेदार प्रतिनिधियों की निष्क्रियता से यहां कुछ भी नहीं बदला। आवालाझरी निवासी जीतू राजपूत बताते हैं कि वर्तमान सांसद का कार्यकाल महज पानी के टैंकरों तक ही सिमटकर रह गया है। जिले के लिए जरुरी विकास करने में वे अपने वादों के मुताबिक कुछ नहीं कर पाए।