दिसंबर की कूटनीति: पुतिन भारत में, मैक्रों चीन में, और ट्रंप ने दो अफ्रीकी देशों में ‘वॉशिंगटन अकॉर्ड’ करवा दिया

दिसंबर का पहला हफ्ता वैश्विक राजनीति में बेहद सक्रिय साबित हो रहा है। एक ओर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लंबे अंतराल के बाद भारत दौरे पर हैं, तो दूसरी ओर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों इस समय चीन में कूटनीतिक मिशन पर हैं।
इसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुद को शांति-दूत बताते हुए एक और चर्चित कदम उठा लिया। उन्होंने अफ्रीकी देशों — कांगो और रवांडा — के बीच चल रहे तनाव को कम करने के नाम पर ‘वॉशिंगटन अकॉर्ड’ करवा दिया। इस समझौते में न केवल शांति स्थापित करने की बात है, बल्कि रेयर अर्थ मिनरल्स पर एक खास रणनीतिक डील भी शामिल है।
समझौते पर हस्ताक्षर के बाद ट्रंप ने दोनों देशों के नेताओं के साथ प्रेस कांफ्रेंस करते हुए कहा—
“इन देशों ने एक-दूसरे से लड़ने में बहुत समय गंवाया है। अब वे गले मिलेंगे, हाथ मिलाएंगे और अमेरिका की आर्थिक मदद से विकास करेंगे—जैसा दुनिया के बाकी देश करते हैं।”
दिलचस्प बात यह है कि यह समझौता उसी संस्थान में साइन हुआ, जिसका नाम एक दिन पहले ही बदलकर यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस से ट्रंप के नाम पर रखा गया।
इसके साथ ही अमेरिका और कांगो के बीच महत्वपूर्ण खनिजों, सोने और रेयर अर्थ मेटल्स के भंडारण से जुड़ी साझेदारी भी तय हुई। कांगो ने वादा किया कि इन संसाधनों के विकास में अमेरिकी कंपनियों को प्राथमिकता मिलेगी। कोबाल्ट पर भी एक अलग समझौता हुआ।
लेकिन असली सवाल—
क्या यह समझौता 30 साल पुराने संघर्ष को रोकेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता कागज पर तो मौजूद है, लेकिन जमीन पर हालात बहुत अलग हैं। कांगो में विद्रोही संगठन एम23 को अब भी रवांडा का समर्थन मिलता है और संघर्ष की स्थिति जस की तस बनी हुई है।
इसलिए ट्रंप की शांति पहल कितनी कारगर होगी, यह अभी बड़ा सवाल है।




