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ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस केस: सुप्रीम कोर्ट बोला— यह हादसा नहीं, आतंक था; जमानत पर नहीं होगी रहमदिली

9 जून 2010 की रात देश के रेल इतिहास पर एक ऐसा काला अध्याय लिख गई, जिसे सिर्फ हादसा कहना सच्चाई से मुंह मोड़ना होगा। ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को साजिश के तहत पटरी से उतारकर 148 बेगुनाह यात्रियों की जान ली गई। यह हमला सिर्फ एक ट्रेन पर नहीं, बल्कि इंसानियत और राष्ट्र की सुरक्षा पर था।

इसी जघन्य कृत्य से जुड़े एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए Supreme Court of India ने साफ शब्दों में कहा कि यह साधारण अपराध नहीं, बल्कि आतंकवादी वारदात है, जहां सहानुभूति की कोई गुंजाइश नहीं।

अदालत ने Calcutta High Court द्वारा दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता भी राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और देश की अखंडता से ऊपर नहीं हो सकती। जस्टिस Sanjay Karol और जस्टिस N. K. Singh की पीठ ने माना कि यह हमला सरकार पर दबाव बनाने और झारग्राम क्षेत्र से सुरक्षा बल हटवाने की साजिश का हिस्सा था।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विरोध का अधिकार कानून के दायरे में रहकर ही स्वीकार्य है। रेल पटरियां उखाड़कर सैकड़ों लोगों की जान खतरे में डालना बर्बरता है, जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। करीब 25 करोड़ रुपये की सरकारी संपत्ति के नुकसान को भी कोर्ट ने गंभीरता से रेखांकित किया।

आरोपी द्वारा 12 साल की जेल अवधि के आधार पर IPC की धारा 436A के तहत जमानत की मांग को भी खारिज कर दिया गया। अदालत ने कहा कि UAPA जैसे कानूनों के तहत आतंकी अपराधों में आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक संभव है, ऐसे में लंबी कैद अपने आप में जमानत का आधार नहीं बन सकती।

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