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अहमदाबाद : हार्दिक ने राजद्रोह मामले में खटखटाया हाईकोर्ट का दरवाजा

अहमदाबाद :  पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति (पास) के नेता हार्दिक पटेल ने पुलिस की क्राइम ब्रांच की ओर से अक्टूबर 2015 में यहां दर्ज राजद्रोह के एक मामले में उनकी आरोपमुक्ति अर्जी को आज खारिज करने के एक निचली अदालत के फैसले को आज गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी।

उनके वकील रफीक लोखंडवाला ने बताया कि अदालत ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया। मामले की सुनवाई अगले माह होगी। एडीजे दिलीप माहिडा की अदालत ने गत 21 फरवरी को हार्दिक की अर्जी को खारिज कर दिया था। उन्होंने गत 4 अप्रैल को उनकी अदालत में हाजिर नहीं रहने पर हार्दिक के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर 25 अप्रैल को पेश होने के आदेश दिये थे। लोखंडवाला ने कहा कि निचली अदालत हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई होने तक आरोप गठन की कार्रवाई नहीं कर सकती।

राजद्रोह का यह मामला 25 अगस्त, 2015 को यहां जीएमडीसी मैदान में हुई उनकी विशाल रैली के बाद भडक़ी हिंसा के सिलसिले में दायर किया गया था। उस हिंसा के दौरान एक पुलिसकर्मी समेत 14 लोगों की मौत हुई थी जबकि 200 से अधिक सरकारी बसों समेत करोड़ों की सरकारी संपत्ति जला दी गयी थी अथवा क्षतिग्रस्त की गयी थी, हार्दिक ने इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए गुजरात हाई कोर्ट में अर्जी दी थी जिसे अदालत ने पहले ही खारिज कर दिया था। इसके बाद पिछले साल सितंबर में उन्होंने निचली अदालत में आरोपमुक्ति अर्जी दी थी।

हार्दिक के वकील ने दलील दी थी कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। उन्होंने कोई षडयंत्र नहीं किया अथवा लोगों को नहीं भडक़ाया। यह हिंसा रैली के बाद की गयी पुलिस कार्रवाई के कारण हुई। दूसरी ओर सरकारी वकील ने दलील दी थी कि हार्दिक ने चुनी हुई सरकार को गिराने के लिए षडयंत्र के तहत हिंसा करायी थी। भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) के तहत इस मामले में दोष सिद्ध होने पर हार्दिक को उम्रकैद की सजा भी हो सकती है। उनके लिए मुश्किल यह है कि इस मामले के तीन अन्य सहआरोपियों और उनके पूर्व करीबी साथियों में से एक केतन पटेल पहले ही वादामाफ गवाह बन चुके हैं। दो अन्य आरोपी चिराग पटेल और दिनेश बांभणिया भी उनके खिलाफ हो गये हैं।

इस मामले तथा सूरत में अपने सहयोगियों को पुलिस की हत्या के लिए कथित तौर पर उकसाने के लिए दर्ज राजद्रोह के एक अन्य मामले के चलते वह पहले नौ माह तक जेल में थे। जुलाई 2016 में गुजरात हाई कोर्ट से जमानत मिलने पर इसकी शर्त के अनुरूप वह छह माह तक राज्य से बाहर रहे थे। हाल में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा का खुलेआम विरोध किया था। सूरत राजद्रोह प्रकरण में भी उनकी आरोप मुक्ति याचिका निचली अदालत ने खारिज कर दी थी और हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने पर इसमें आरोप गठन की प्रक्रिया जारी है।

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