नईदिल्ली : पर्यावरण संरक्षण और जनता के लाभ के लिये बने करीब एक लाख करोड़ रुपए के कोष की रकम दूसरे कार्यो में इस्तेमाल होने के तथ्य से आहत सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खिन्न होकर टिप्पणी की, हमें कार्यपालिका बेवकूफ बना रही है.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की बेंच ने सरकार की तीखी आलोचना करते हुये कहा कि उसने कार्यपालिका पर भरोसा किया लेकिन प्राधिकारी काम ही नहीं करते. और जब हम कुछ कहते हैं तो यह कहा जाता है कि यह तो न्यायिक सक्रियता से और आगे निकल जाना है.
बेंच ने साफ़ किया कि पर्यावरण संरक्षण के लिये सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर बनाये गये विभिन्न कोषों के अंतर्गत संग्रहित इस विपुल राशि का इस्तेमाल सिर्फ पर्यावरण कार्यों और जनता के लाभ के लिये ही होना था.बेंच ने कहा , यह एकदम साफ है कि जिस काम के लिये यह रकम थी उसका उपयोग उससे इतर कार्यो में किया गया. आप क्या चाहते हैं कि न्यायालय कितनी दूर जाये ? हमने कार्यपालिका पर भरोसा किया लेकिन वे कहते हैं जो हमारी मर्जी होगी, हम वह करेंगे.
पहले , हमें उन्हें पकडऩा होगा कि आपने हमारे भरोसे को धोखा दिया और धन का इधर उधर इस्तेमाल किया. क्या हम पुलिसकर्मी या जांच अधिकारी हैं ? हम किसी छोटी रकम के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. यह बहुत ही निराशाजनक है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि करीब 11,700 करोड़ रुपए वनीकरण क्षतिपूर्ति कोष प्रबंधन और नियोजन प्राधिकरण (कैंपा) में था जिसका सृजन कोर्ट के आदेश के तहत हुआ था और इस तरह के सभी कोषों में जमा कुल राशि करीब एक लाख करोड़ रूपए है.
हालांकि , एक वकील ने कोर्ट से कहा कि कैंपा से करीब 11 हजार करोड़ पहले ही खर्च हो गया है और इसमें कुल 50 हजार करोड़ रूपए होंगे.बेंच ने कहा , हमें क्या करना है ? आप लोग काम नहीं करते हैं. यह पूरी तरह कल्पना से परे है. जब हम कहते हैं , तो कहा जाता है कि यह न्यायिक सक्रियता और न्यायिक सीमा से बाहर है. हमें कार्यपालिका की ओर से बेवकूफ बनाया जा रहा है.
उन्होंने कहा , इसका (धन) उपयोग नागरिक या नगर निगम कार्यों के लिए नहीं किया जा सकता.बेंच ने कहा कि करीब नब्बे हजार से एक लाख करोड़ रूपए की धनराशि थी जो कोर्ट के आदेशों पर केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के पास विभिन्न मदों में रखी थी. कोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि इस साल 31 मार्च की स्थिति के अनुसार इन सारे कोषों और इनमें रखी राशि का ब्यौरा तैयार किया जाये.
बेंच ने कहा , पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया जाता है कि वह हमें यह बताएं कि एक लाख करोड़ रुपए की धनराशि का किस तरह से और उपयोग किया जायेगा और किन क्षेत्रों में इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले को नौ मई के लिये सूचीबद्ध कर दिया.
कोर्ट को यह भी सूचित किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत राजधानी में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों से टोल टैक्स के अलावा दिल्ली में पर्यावरण क्षतिपूर्ति शुल्क के रूप में 1301 करोड़ रुपए इकठ्ठा हुए थे. इसके अलावा 2000 सीसी से अधिक क्षमता के इंजन वाले वाहनो से वसूले गये उपकर के रूप में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास 70.5 करोड़ रुपए जमा हैं.बेंच ने दिल्ली सरकार और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को यह बताने का निर्देश दिया कि इस धन का किस तरह उपयोग किया जायेगा.
इन कोषों में जमा धन का इस्तेमाल दूसरे कार्यों में किये जाने का मुद्दा कोर्ट में ओडिशा के मुख्य सचिव के हलफनामे के ऑब्जरवेशन के दौरान सामने आया था. कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि इस धनराशि का इस्तेमाल सडक़ निर्माण, बस अड्डों के नवीनीकरण और कालेजों में विज्ञान प्रयोगशालाओं के लिये किया जा रहा है.
बेंच ने ओडिशा सरकार के वकील से कहा , यह धन जनता की भलाई के कार्यो के लिये था. इसका इस्तेमाल सिर्फ उसी के लिये होना चाहिए और आपके शासन के हिस्से के रूप में नहीं.
इस मामले में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे एक वकील ने कहा कि इन कोषों के अंतर्गत जमा राशि का इस्तेमाल ओडिशा में आदिवासियों के कल्याण के लिये होना चाहिए.
कोर्ट ने ओडिशा सरकार के वकील को और विवरण दाखिल करने के लिये तीन सप्ताह का समय देते हुये मुख्य सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर उपस्थित रहने का निर्देश दिया है.
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