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अंडे के ठेले वाले ने कैसे खड़ा कर लिया करोड़ों का साम्राज्य?

रायपुर। साल 2005 में रायपुर के गुढ़ियारी इलाके में एक अंडे का ठेला लगाने वाला शख्स महज 20 साल के भीतर ही जुर्म की दुनिया का बदशाह बन गया, और सिर्फ जुर्म ही नहीं बल्कि भाजपा हो या फिर कांग्रेस दोनों पार्टियों में उसने अपनी जड़ें जमा ली थीं । और पूरी तैयारी थी अपनी काली कमाई को सफेदपोश सियासत में समेटने की, लेकिन कानून वो बला है, जबतक खामोश है तो खौफ है, लेकिन जब अपराध को उजाड़ने की सौगंध खा ले, तो बड़े बड़े अपराधी मिट्टी में मिल जाते हैं । ऐसा ही कुछ हुआ तोमर बंधुओं के साथ भी, जिनका साम्राज्य और खौफ खत्म होने की कगार पर है ।
जुर्म की इस कहानी की शुरूआत होती है करीब 2005 से, जब 18 साल का वीरेंद्र तोमर ठेले पर अंडे बेचता था । तेज, तड़क-भड़क वाला लड़का। ग्राहकों से मुस्कराकर पेश आता, लेकिन अंदर एक अधूरी भूख जल रही थी – पैसों की, ताकत की, और एक नाम का जो सबके होंठों पर हो, वो भी एक डर के साथ।

2006 में चाकूबाजी…

पुरानी बस्ती के एक व्यापारी से उधारी को लेकर बहस हुई। बहस चाकू तक पहुंची। वीरेंद्र ने कारोबारी पर हमला कर दिया। मामला दर्ज हुआ, लेकिन गवाह पलट गए । जिससे वीरेंद्र का हौसला बढ़ा और अब अंडे के ठेले वाला लड़का सीना तानकर चलने लगा था ।

साल 2007 से 2010 के बीच छोटा भाई की एंट्री….

वीरेंद्र ने छोटे-मोटे सट्टेबाजों और पैसे की तंगी झेल रहे ज्वेलर्स को नोटों की गड्डियों से लुभाना शुरू किया। 10% महीने का ब्याज… लेकिन शर्तें बेहद सख्त होती थीं । समय पर पैसा नहीं दिया, तो मोबाइल छीनना, दुकान बंद कराना, और कई बार गाड़ी उठा ले जाना । ये सब वीरेंद्र का बिजनेस बन चुका था । इन्हीं दिनों उसका छोटा भाई रोहित तोमर भी बड़े भाई के गुनाहों में शामिल होने लगा था ।

साल 2010: पैसे के लिए मारपीट….

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक गुढ़ियारी में एक पुराने ग्राहक ने पैसे लौटाने में देरी कर दी। वीरेंद्र और उसके गुर्गों ने बीच बाजार उसे पीटा। वीडियो भी वायरल हुआ, FIR दर्ज हुई, लेकिन फिर केस ठंडा करवा दिया गया ।

2013 – पहली हत्या का आरोप…

अभी तक जो वीरेंद्र तोमर चाकूबाजी और मारपीट की घटनाओं को अंजाम दे रहा था, साल 2013 में उसपर बेहद गंभीर आरोप लगा. हलवाई लाइन के व्यापारी ने सूदखोरी से परेशान होकर पैसे देने से मना किया। वीरेंद्र और उसके साथियों ने उसे अगवा किया, और बाद में वो व्यापारी मृत मिला। केस दर्ज हुआ, लेकिन पुलिस के पास सबूत नहीं थे । शायद डर और पैसे ने इंसाफ को कुचल दिया ।

2015 – मानसिक प्रताड़ना की शिकायत…

एक महिला ने थाने में रिपोर्ट लिखवाई – “वीरेंद्र तोमर मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है, धमकाता है, पैसे मांगता है।” रिपोर्ट दर्ज हुई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। वीरेंद्र की जड़ें अब सिर्फ सड़कों तक नहीं, थानों और सियासत की दहलीज तक जमने लगी थीं ।

2016 – मारपीट की शिकायत और बैंक से खेल….

एक युवक ने FIR लिखवाई – मारपीट और धमकी का आरोप लगाया…लेकिन जैसा होता रहा था…उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई….इसी साल वीरेंद्र ने यूको बैंक से 45 लाख का लोन लिया – वो भी BMW कार के नाम पर। लेकिन एक भी किस्त नहीं चुकाई। बैंक वाले भी चुप रहे, और अब डर का साम्राज्य और बड़ा होता जा रहा था।

2017 – भाटागांव में महिला से मारपीट…

एक महिला ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई – “जान से मारने की धमकी दी जा रही है। घर के बाहर लोग घूमते हैं। पुलिस ने औपचारिक जांच की, लेकिन वीरेंद्र का नाम फिर बच गया ।

2018 – ब्लैकमेलिंग का नया दौर…

ये साल आते आते वीरेंद्र के साथ साथ उसके छोटे भाई रोहित ने भी अपराध की दुनिया में अपनी पकड़ बना ली थी…इस साल से वीरेंद्र और रोहित ने मोबाइल रिकॉर्डिंग्स, फर्जी दस्तावेज़ और बदनाम करने की धमकियों से ब्लैकमेलिंग शुरू की। खासतौर पर छोटे ज्वेलर्स और बिल्डर्स इनका निशाना बने।

2019 – केस दर केस…

कोतवाली और कबीर नगर थानों में सूदखोरी, ब्लैकमेलिंग, मारपीट, धोखाधड़ी, और कूट रचना के केस दर्ज हुए । हलवाई लाइन के एक व्यापारी ने यहां तक कहा – “अगर मैंने पैसे नहीं दिए तो मेरी बेटी की फोटो वायरल कर देंगे।”

2020–2022: खौफ चरम पर पहुंचा…

तोमर ब्रदर्स का नेटवर्क शहर के हर कोने में फैल गया था। उनके पास अब नोट गिनने की मशीनें थीं, जमीन के सौदे थे, और दर्जनों लोगों के ATM कार्ड और पासबुक। गाड़ियों का काफिला और बाउंसरों की फौज उनके साथ चलती थी । कानून से खेलने का तरीका अब इन्हें अच्छे से आने लगा था ।
इस दौरान उनके घर की महिलाएं – शुभरात्रि तोमर और नेहा तोमर भी सूदखोरी के जाल में शामिल हो चुकी थीं। ब्याज की रकम इन्हीं के खातों में जाती थी।

2023 से शुरू हुआ पतन का सफर…

ये साल तक इनके गुनाहों की लिस्ट लंबी होती जा रही थी, और पीड़ितों की संख्या भी काफी बढ़ती जा रही थी । कई पीड़ितों ने चुप्पी तोड़ी । एक बिल्डर ने खुलासा किया – कि “मुझे छह महीने तक ब्लैकमेल किया गया । मेरी दुकान सील करने की धमकी मिली। और जब मैंने विरोध किया, तो मेरी कार जला दी गई।

2024 – कोर्ट का आदेश, लेकिन कोई असर नहीं

इधर यूको बैंक ने कोर्ट से अपील की – “BMW जब्त की जाए और लोन की रिकवरी हो।”
कोर्ट ने आदेश दिया – “कार जप्त कर बैंक को सौंप दी जाए।” लेकिन वीरेंद्र ने कार वहीं रखी। RTO तक कोई हिम्मत नहीं कर सका ।

जनवरी 2025 – फरियाद का विस्फोट…

पुलिस के पास केस की संख्या बढ़ने लगी। हर हफ्ते नया पीड़ित सामने आता – कोई कहता मोबाइल छीना गया, कोई कहता बच्चों को अगवा करने की धमकी दी गई। अब पुलिस भी दबाव में आ गई, क्योंकि आम जनता में इनके खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा था, जिसकी आंच सियासी गलियारों को भी तपाने लगी थी । और तपीश भी इतनी थी कि प्रदेश के गृहमंत्री तक इसके जद में आने लगे थे ।

फरवरी 2025 में हुई छापेमारी…

लगातार बढ़ते दवाब के बाद पुलिस ने वीरेंद्र और रोहित के भाठागांव स्थित आलीशान घर पर छापा मारा। जहां से 37 लाख रुपए नकद, 734 ग्राम सोने के जेवरात, 125 ग्राम चांदी, BMW, थार, ब्रेज़ा, नोट गिनने की मशीन, अवैध रूप से रखी 5 तलवारें, 1 रिवाल्वर, 1 पिस्टल और ज़िंदा कारतूस, ज़मीन के दस्तावेज, ई-स्टांप बरामद हुए ।
पुलिस अफसर भी हैरान रह गए, क्योंकि ये तो कोई माफिया डॉन का ठिकाना लग रहा था, किसी अंडे के ठेले वाले वीरेंद्र तोमर का नहीं।

मार्च 2025 – पहली गिरफ्तारी

पुलिस ने वीरेंद्र के भतीजे दिव्यांश तोमर को गिरफ्तार किया। लेकिन दोनों मुख्य आरोपी – वीरेंद्र और रोहित – फरार हो चुके थे। पुलिस की टीमें देशभर में दोनों भाइयों को तलाश रही हैं। कई पीड़ित अब सामने आकर बयान दे रहे हैं। धीरे-धीरे डर की दीवारें भी टूट रही हैं।
बीस साल पहले जो लड़का ठेले पर उबाल रहा था अंडे, उसने दो दशक में रायपुर के काले कारोबार की एक खौफनाक इमारत खड़ी कर दी थी। लेकिन समय हर काले साम्राज्य का फैसला करता है। और अब वो समय वीरेंद्र और रोहित तोमर के लिए भी आ चुका है । वैसे वीरेंद्र तोमर के काले कारनामों की कहानी सिर्फ इतनी भर नहीं है, बल्कि उसे समय में बांधना बेहद मुश्किल है । इसके साथ ही इसके छोटे भाई रोहित तोमर भी खौफ का दूसरा नाम बन चुका था ।

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