
लेफ्ट & राइट: भारत में पुलिस कैसे काम करती है, ये सवाल उतना ही जटिल है जितना कि ये जानना कि प्रशानसनिक अधिकारियों के घर जब छापा पड़ता है तो उनके पास आय से अधिक संपत्ति कैसे निकलती है। लेकिन चलिए लेफ्ट एंड राइट में आज हम, एक आम आदमी की नजर से देखने की कोशिश करते हैं कि पुलिस वास्तव में कैसे काम करती है।
- FIR दर्ज़ कराना – एक ऐतिहासिक उपलब्धि
एक आम नागरिक अगर थाने में चला जाए और कहे कि उसके मोबाइल की चोरी हो गई है, तो पुलिस पहले उसकी शक्ल देखेगी। दो से तीन टेबलों पर घूमाएगी, फिर पूछेगी – “कहाँ चोरी हुआ? तुम क्या कर रहे थे? तुम्हारे पास बिल है? क्यों नहीं ध्यान रखा?” ये हाल सिर्फ चोरी का नहीं करीब-करीब सभी केस में यही होता है ।
अगर आपकी थाने में FIR दर्ज़ हो गई तो समझिए कि लोकतंत्र की छोटी-सी जीत हो गई । लेकिन अगर आरोपी रसूखदार निकला, तो पुलिस को अचानक याद आ जाता है कि संविधान में कुछ धारा-वारा भी होती हैं । और अगर वही रसूखदार थानेदार को व्हाटएस पर भी शिकायत भेज दे….तो हो सकता है कुछ ही देर में आरोपी को उठाने पुलिस स्वयं चलकर आरोपी के घर तक ही पहुंच जाए । थाने की पुलिस सबसे पहले ये देखती है कि शिकायत कर कौन रहा है ।
- VIP Culture – ‘आम’ बनाम ‘ख़ास’
पुलिस की स्पीड और संवेदनशीलता VIP व्यक्ति की शक्ल देखकर 5G हो जाती है। अगर किसी मंत्री की बिल्ली भी गुम हो जाए, तो पुलिस ड्रोन से लेकर डॉग स्क्वॉड तक पुलिस भेज सकती है। लेकिन आम आदमी की बेटी भी गुम हो जाए, तो जवाब यही मिलेगा – “भाग गई होगी… दो दिन रुकिए, वापस आ जाएगी ।
- लाठी – सर्वश्रेष्ठ समाधान
पुलिस का जहाँ दिमाग चलना बंद कर देता है, वहाँ लाठी चलती है। कानून की किताब मोटी है, लेकिन पुलिस की मर्ज़ी पतली लाठी में छुपी होती है। लोकतंत्र के किसी भी कोने में अगर जनता ने सवाल पूछ लिया…तो जवाब हो सकता है उसे लाठियों से ही मिले ।
पुलिस की लाठी इतनी बहुउपयोगी चीज़ है.. कि इससे अपराधियों को सुधारना होता है, लेकिन इसके साथ पत्रकार, छात्र, किसानों को पुलिस इसी से सुधारने का काम करती है । और कभी-कभी तो पुलिस इसी लाठी से न्याय भी कर देती है।
- जांच – समय का खेल
अब अगर हम बात पुलिस की जांच की करें, तो पुलिस जांच की रफ्तार उस कछुए जैसी होती है जिसे ऑफिस जाने की जल्दी नहीं होती। अगर मामला किसी बड़े आदमी का है, तो जांच पहले ‘लटकती’ है, फिर ‘भटकती’ है और अंत में ‘रुक जाती’ है। सबूत ग़ायब, गवाह मुकर गए, कैमरे बंद थे, फाइल गुम हो गई… और मामला ठंडा।
- मीडिया के लिए पुलिस – सजग और सतर्क
कैमरा ऑन होते ही पुलिस की वर्दी चमकने लगती है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपराधी को पकड़कर ऐसे पेश किया जाता है जैसे रावण का अंत हो गया हो। लेकिन कैमरा बंद होते ही वही अपराधी बेल पर बाहर होता है और पुलिस – “कानून अपना काम कर रहा है” कहकर अगली प्रेस कॉन्फ्रेंस की तैयारी में लग जाती है।