
महासमुंद : इस बार शरद पूर्णिमा बुधवार को मनाया जाएगा। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसेगा। इसी दिन माता लक्ष्मी, चंद्रमा और देवराज इंद्र का पूजन रात्रि के समय होता है। ज्योतिषियों के अनुसार पूर्णिमा तिथि 23 अक्टूबर की रात 10.36 से प्रारंभ होकर 24 अक्टूबर को रात 1.14 बजे तक रहेगी। मान्यताओं के अनुसार इस दिन चंद्रमा धरती के निकट होकर गुजरता है। इसी दिन से शरद ऋतु की शुरुआत मानी जाती है।
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इस दिन लक्ष्मीजी की साधना करने से आर्थिक और व्यापारिक लाभ मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात में अमृतमयी धारा बहती है। इस दिन खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है। इस खीर को अगले दिन ग्रहण करने से घर में सुख-शांति और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात में चांदनी में रखे गए खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने का विधान है। दमा के रोग में विशेष लाभ मिलता है। इस रात्रि में चंद्रमा सबसे तेज व ऊर्जावान होता है। शरद पूर्णिमा को चंद्रमा को अघ्र्य देकर और पूजन करने के बाद चंद्रमा को खीर का भोग लगाना चाहिए। रात 10 से 12 बजे तक चंद्रमा की किरणों का तेज अधिक रहता है।
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इस बीच खीर के बर्तन को खुले आसमान में रखना फलदायी होता है, उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं और वह मन, मस्तिष्क व शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य तुला राशि में नीचे होकर मेष राशि में स्थित चंद्रमा पर पूर्ण दृष्टि डालता है। इससे चंद्रमा को अधिक शक्ति मिलती है। चंद्र की शक्ति से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ होता है। सोम चक्र नक्षत्र व अश्विन नक्षत्र भी ऊर्जा देता है।