जगदलपुर : बस्तर में जुल्म और लूटपाट का तांडव नृत्य कर रहे हैं नक्सली

जगदलपुर : पुलिस, उनके मुखबिरों के खून से होली खेलते-खेलते अब निरीह, निहत्थे तथा निर्दाेष लोगों की हत्याएं, आगजनी और लूटपाट कर नक्सली अपनी विकृत हो रही मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। नक्सलियों का यह घिनौना कृत्य घोर निंदनीय है। यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि क्रांतिकारी आंदोलन अब भटके तथा गुमराह लोगों की आतंकी कमाई का जरिया बन गया है। नक्सलियों की उल-जलूल हरकतों से यह महसूस होता है कि वे मानसिक रूप से कुंठित हो गए हैं।
अपराधियों ने थामी नक्सलवाद की बागडोर
नक्सलियों के वर्तमान ओछे कारनामें यह इंगित करते हैं कि, उनकी आदर्शवादिता, शोषण, अत्याचार के खिलाफ अलख जगाने की दुहाई निहायत ढोंग व मिथ्या प्रचार है। सरकार एवं पुलिस के खिलाफ जुल्म व अत्याचार के आरोप जड़ी हु़ई विज्ञप्तियां प्रसारित करने वाले स्वयं कितने आदर्शवादी हैं, यह निर्दोषों की निरंतर की जा रही जघन्य हत्या, आगजनी की घटनाओं से स्वयं प्रमाणित हो जाता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने मूल उद्देश्य, सिद्धांत तथा विचारधारा से विचलित और विमुख हो गए हैं। जरायम पेशा, मानसिकता के तत्वों ने अब नक्सलवाद की कमान थाम ली है। नक्सली यदि ऐसी ही घिनौनी कारगुजारियों को अंजाम देते रहेंगे तो जनता की रही-सही सहानुभूति से भी हाथ धो बैठेंगे।
खामियाजा भुगत रहे बस्तरवासी
5 दशक पूर्व जब नक्सलवाद के बस्तर में कदम पड़े थे, तब शायद बस्तरवासियों को इस बात की रंच मात्र की कल्पना नहीं थी कि, उनके द्वारा दिए गए मौन समर्थन का उन्हें इतना गंभीर व भयानक खामियाजा भुगतना पड़ेगा। अपनी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
क्यों मौन हैं नक्सली नेता
शोषकों एवं वर्ग शत्रुओं का सफाया ही नक्सलवादी क्रांति की आत्मा का मुख्य लक्ष्य था, परंतु वर्तमान तथाकथित आंदोलन में लूटपाट, हिंसा, आतंक, अत्याचार, अपहरण तथा खून खराबे का बोल-बाला दिखलाई दे रहा है। समकाल में उनका मकसद भले-बुरे कार्यों के निष्पादन के लिए रास्ता साफ करने की नीयत से दहशत फैलाना है। क्या आतंक के नाम ऐसा बर्बर असहिष्णु तंत्र खड़ा करना ही नक्सलवादी आत्मा का लक्ष्य था ? ऐसे मामलों में नक्सलियों के दिग्गज नेताओं की चुप्पी यह दर्शाती है कि, उन्होंने बस्तर में ऐसे दुष्कृत्यों की स्वीकृति दे दी है।